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★ जैन-गौरव-स्मृतियाँ Se
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१६ . चूर्णिकारों में जिनदास महत्तर प्रसिद्ध हैं। इन्होंने नन्दीसूत्र की तथा अन्य सूत्रों पर चूर्णियाँ लिखी हैं। .
आगमों पर की गई संस्कृत टीकाओं में सबसे प्राचीन आचार्य हरिभद्र की टीका है। उनका समय वि० ७५७ से ८५७ के बीच का है।
आचार्य हरिभद्र के बाद दशवीं शताब्दी में शीलांक सूरि संस्कृत ने आचारांग और सूत्रकृताङ्ग पर संस्कृत टीकाएँ लिखी। टीकाए इनके बाद प्रसिद्ध टीकाकार शान्त्याचार्य हुए जिहोंने
उत्तराध्ययन पर विस्तृत टीका लिखी है । इसके बाद सवले. अधिक प्रसिद्ध टीकाकार अभयदेव हुए जिन्होंने नौ अंगों पर टीकाएँ लिखीं। अभयदेव का समय वि० सं० १०७२ से ११३५ है। आगमों पर टीका करने वालों में सर्वश्रेष्ठ स्थान आचार्य मलयगिरि का है। इनका समय बारहवीं शताब्दी है । ये आचार्य हेमचन्द्र के समकालीन थे। मलयगिरि की टीकाओं में प्राञ्जल भापा में दार्शनिक विवेचन मिलता है । कर्म,
आचार, भूगोल, खगोल आदि सब विपयों पर इतना सुन्दर विवेचन अन्य टीकाओं में नहीं है । अतः मलयगिरि की टीकाओं का विशेष महत्व है। मलधारी हेमचन्द्र ने भी आगमों पर टीका लिखी है। . . .
संस्कृतभापा का समय जब बीत गया और वह केवल साहित्य की भाषा ही रह गई तब देशी अपभ्रंश अर्थात् प्राचीन गुजराती भाषा में वालाववोध टनों की रचना हुई । बालाववोध की रचना करनेवाले कई हुए हैं परन्तु लोकागच्छ के धर्मसिंह मुनि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। वालावबोधों में आगमों का संक्षिप्त अर्थ किया गया है।
प्रागमों पर विदेशी विद्वानःजैनागमों पर लिखने वाले विदेशी विद्वानों में जर्मनी के प्रोफेसर वेवर, विन्टर निट्स, हर्मन जेकोबी, हॉर्नल, शुनिंग आदि मुख्य हैं। वेवर ने sacred litirature of the Jains में जैनागमों पर स्वतंत्र विवेचन किया है। ( यपि इसमें कतिपयं बातें आपत्तिजनक भी हैं। ) मो. . विन्टरनिटस ने A History of Indianlitrature में जैनागमों के सम्बन्ध में अपेक्षाकृत ठीक २ लिखा है।