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________________ * जैन-गौरव स्मृतियाँ भी ज्ञान कराने के लिए पूर्वो में से उद्धृत का इन समर्थ आचार्य ने दर्श वैकालिक की रचना की है । इन आचार्य को वीर नि० सं० ७५ में युगप्रधान पद मिला और ये वीर नि० सं० ६८ तक उस पद पर रहे । अतः दश वैकालिक की रचना का समय विक्रम पूर्व ३६५ और ३७२ के बीच का है। इसकी चूलिकाएँ बहुत सम्भव है कि बाद में जोड़ी गई हों। छेदसूत्रों में दशाश्रु त, बृहत्कल्प और व्यवहार सूत्रों की रचना भद्र- . बाहु ने की है अतएव इनका रचना-काल वीरनिर्वाण संवत् १७० से अर्वाचीन . नहीं हो सकता । अर्थात् विक्रम संवत् ३०० के पहले बन चुके थे। महानिशीथ सूत्र की वर्तमान संकलना आचार्य हरिभद्रसरि की है। आवश्यक सूत्र के रचयिता या तो गणधर हैं या उनके समकालीने कोई स्थविर । क्योंकि जहाँ . पठन का अधिकार आता है वहाँ “सामाइयाणि एकादसंगाणि" पाठ आता है इससे मालूम होता है कि उस समय में भी सर्वप्रथम आवश्यकसूत्र पढ़ाया जाता था। इससे इसका रचना-काल अंगकालीन ही समझा जाना चाहिए। अतः इसकी रचना विक्रम पूर्व ४७० के पहले हो चुकी थी। पिंडनियुक्ति दशवेकालिक की नियुक्ति का अंश है अतः इसके रचयिता भद्रवाहु हैं। प्रकीर्णकों की रचना के विषय में यह कहा जा सकता कि इनकी रचनावालभी वाचना तक--समय २ पर हुई है । आतुरप्रत्याख्यान और चतुःशरण आदि वीरभद्रगणि ने ( लगभग वि० सं० ४७० में) रचे ऐसा कहा जाता है। लेकिन नन्दीसूत्र में चतुः शरण और भक्त परिज्ञा का उल्लेख नहीं है इससे उक्त कथन की संगति नहीं प्रतीत होती। ___ भगवान महावीर के पश्चात् उनके गणधर श्री इन्द्रभूति गौतम और श्रीसुधर्मा तथा सुधर्मा के शिष्य श्रीजन्यू केवलज्ञानी हुए। अतः वीर निर्वाण की .. प्रथम शताब्दी में तो सब सिद्धान्त अपने मूलस्वरूप में बागमों की वाच- अवस्थित रहे । सिद्धान्त ग्रन्थ उस समय लिपिवद्ध नहीं किये नाएं :-- गये बल्कि कंठस्थ ही धारण किये जाते थे। गुरु अपने ... शिष्यों को कंठस्थ वाचना देते थे। इस तरह आगमों की परम्परा विद्यावंश को अपेक्षा से अविच्छिन्न रूप से कुछ समय तक चलती रही। आगमों की भापा लोकभाषा-प्राकृत होने से उस पर देशकाल का प्रभाव पड़े बिना न रह सका। श्रमण भिन्न २ देश में विचरते थे। अतः XKAMANAKAMD३EETPORNEXANEERINARYANA
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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