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>>>> जैन- गौरव स्मृतियाँ ★
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राजनीतिज्ञ और दूरदर्शी दीवान रहे जिनके संचालन में मेवाड़ राज्य के अच्छी समृद्धि प्राप्त की ।
: इस तरह मेवाड़ राज्य के इतिहास में जैनवीरों के द्वारा किये गये राजनैतिक और सामरिक, आर्थिक और परमार्थिक कृत्यों के द्वारा यह प्रमाणित हो जाता है कि जैनवीरों ने इस राज्य के निर्माण, रक्षण और समृद्धि में महत्वपूर्ण हिस्सा लिया है। इन वीरों ने जिस प्रकार अपनी बुद्धि का उपयोग देश के लिए किया उसी तरह वीर योद्धाओं की तरह ये रण मैदान में भी उतरे हैं और विजय श्री प्राप्त की है। इन वीरों ने यह सिद्ध कर दिया कि 'जैन' जैसे अपने बुद्धिबल से राज्यशासन का संचालन कर. सकते हैं वैसे ही रण - मैदान में वीरता पूर्वक जूझ सकते हैं । तात्पर्य यह है कि मेवाड़ राज्य के इतिहास में जैनजाति का अत्यन्त गौरवमय स्थान रहा है और वर्तमान में भी है
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जोधपुर जैनियों का केन्द्रस्थान है । इस राज्य के इतिहास के प्रथम पृष्ठ के साथ ही जैनवीरों की गौरवगाथाएँ जुड़ी हुई हैं । जोधपुर राज्य की स्थापना राव जोधाजी ने की। ईसा की पन्द्रहवीं शताब्दी जोधपुर राज्य के इनका उदयकाल है । राव जोधाजी चित्तौड़ में अपने पिता के मारे जाने पर मेवाड़ छोड़कर सात सौ सिपाहियों के साथ मारवाड़ की ओर चल पड़े । मेवाड़ की फौज ने इनका पीछा किया। इनके अधिकांश सैनिक मारे गये । केवल बचे हुए सात सैनिकों को लेकर राव जोधाजी जीलवाड़ा नामक स्थान पर पहुँचे । यहाँ राव समरोजी से उनकी भेंट हुई।
जैनवीर
ये दोनों नरवीर मूलतः चौहान वंश के थे परन्तु जैनाचार्यों ने इनके पितामह या प्रपितामह को जैनधर्म में दीक्षित किया था । ये ओसवाल भण्डारी के नाम से विख्यात हुए । ये दोनों बड़े रणकुशल और वीर थे। इनके सहयोग से ही राव जोधाजी जोधपुर राज्य की नींव डालने में समर्थ हो सके। जीलवाड़ा में जब राव जोधाजी इनसे मिले तो इन्होंने उन्हें ढाढस बँधाया और कहा कि "आप मारवाड़ की ओर आगे बढ़ते जाइये। राणा जी की
राव समरोजी और नरोजी भराडरी
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