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* जैन-गौरव-स्तृतियां
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ligion of valabhi, the first. capital of Ranas ancestors, and many monuments attest the support fhis family. has granted to its . .professors in all the vicissitades of their fortunes.
The many ancient cities, where this regilinn was fostered have inscriptions wliich evince their prosperity in these contries with whose history their own is interwoven. In fine, the necrological records of the Jains bear witness to their having occupied a distinguished place in Rajput society; and the previleges they still enjoy prove that they are not overlooked." .. टॉड साहव के उक्त कथन का सारांश यह है कि-यूरोपनिवासियों को जैनजाति की संख्या और उसकी शक्ति के विषय में बहुत कम ज्ञान है। इस जैनजाति की धार्मिक और राजनैतिक शक्ति का परिचय देने के लिये इतना कहना ही प्रर्याप्त है कि इस धर्म की अनेक शाखाओं में से एक खरतर गच्छ के धर्माधिकारी ( आचार्य) के ग्यारह हजार शिष्य हैं जो सारे भारतवर्ष में फैले हुए हैं। इसकी एक ओसवाल जाति में ही एक लाख कुटुम्ब हैं। भारत की आधी से अधिक सम्पत्ति जैनजाति के हाथ में है ।
राजस्थान और सौराष्ट्र जैनधर्म के केन्द्र हैं। इसके पवित्र पार्वात्य __ मन्दिरों में से प्रावू, पालिताना और गिरनार इन्हीं प्रदेशों में हैं। राजस्थान
के अधिकांश राज्यधिकारी जैनजाति के ही हैं.। लाहौर से लेकर समुद्र के किनारे तक इस जाति के अधिकांश व्यक्ति प्रायः वैकर्स हैं । उदयपुर और राजस्थान के अन्य नगरों के प्रधान न्यायाधीश और न्यायालय के अधिकांश अधिकारी जैन ही हैं।
मेवाड़ के राज्यवंश ने अति प्राचीनकाल से जैनधर्म के अनुयायियों का सन्मान किया है । राणावंश के पूर्वजों की प्राचीन राजधानी वल्लभी का राजधर्म जैनधर्म ही था। आज भी कतिपय स्मृति लेख यह प्रमाणित करते है कि इस राजवंश ने जैनों को कतिपय विशेषाधिकार वंशपरम्परा तक के लिए प्रदान किये है। . .... ... ... . .. ...