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* जैन-गौरव-स्मृतियाँ है
. प्रियता, और विद्या में श्रेष्ठ थी । इस वंश का महेन्द्रवर्मा राजा प्रसिद्ध
हुआ। यह पहले कट्टर जैन था परन्तु बाद में शैव हो गया था । - सन् ११२६ से ११८६ तक दक्षिणमारत में इस वंश का प्रधान
रहा है। इस वंश का विज्जलदेव नामक राजा प्रसिद्ध कलचूरी:- जैनवीर था । ... यह वंश मूल में द्राविड़ था और कर्णाटक प्रदेश उसका स्थान था। कलभ्रवंशः पाँचवीं सदी में इस वंश के राजाओं ने पाण्ड्य, चोल और
चेर राज्यों को अपने आधीन करलिया था। इस वंश के सव राजा जैनधर्म के अपूर्व प्रभावक थे ।
यद्यपि मूलतः यह राजवंश भी जैनधर्मानुयायी था परन्तु बाद में वह चोलवंश शैव हो गया था । कुर्ग व मैसूर के मध्यवर्ती प्रदेश पर राज्य - करने वाले चंगल वंशी राजा पक्के जैनधर्मानुयायी थे। इनकी उपाधि- महामाण्डलिक मण्डलेश्वर थी । इनमें राजेन्द्र, मादेवन्ना आदि प्रसिद्ध राजा हैं।
. यह वंश भी प्राचीनकाल से जैनधर्म का उपासक था। एलिन और चेरवंश राजराजव पेरुमल इस वंश के राजा थे जो जैनधर्म के भक्त थे । . . इस वंश के राजा जैनधर्म के अनन्य भक्त थे । इनकी राजधानी शिलाहारवंश कोल्हापुर में थी । उस वंश का पाँचवाँ राजा"झझा" इतना
प्रसिद्ध था कि उसका वर्णन अरव इतिहासज्ञ मसूदी ने लिखा है । इन राजाओं के बनाये हुए कई एक भव्य जैनमन्दिर आज भी मौजूद हैं।
___सन् १३२६ में होयसल राजाओं को मुसलमानों ने नष्ट कर दिया था तव दक्षिण भारत में एक महान क्रान्ति हुई जिसके फलस्वरूप"विजय नगर-साम्राज्य का जन्म हुआ। इस साम्राज्य में मुख्य हाथ ब्राह्मणधर्म का था तदपि इसके राजागण जैनधर्म के प्रति सहानुभूति रखते थे । राजकुमार 'उग्र' जैनधर्म में दीक्षित हुए थे। देवराज द्वितीय ने विजयनगर में जैनमन्दिर बनवाया था। राजा हरिहरद्वितीय के सेनापति 'ईगप्प' जैनी थे। इनके दूसरे सेनापति 'वैचप्प' थे ! इन्होंने कोंकण के युद्ध में बहुत वीरता बताई थीं।