________________
S
SC★ जैन-गौरव स्मृतियां
विद्या महार्णव पण्डित नगेन्द्रनाथ वसु भी अशोक को एक समय जैन प्रकट करते
कल्हणकवि विरचित राजतरङ्गिणी मैं, जो कि ग्यारहवीं शताब्दी में रची हुई है यह उल्लेख किया गया है कि अशोक ने काश्मीर में जैनधर्म का (जिनशासन का ) प्रचार किया था। वह श्लोक इस प्रकार है:- . .
___ यः शान्ति वृजिनो राजा प्रयत्नोजिनाशासनम्। .. ...शुष्कलेऽत्र वितस्तात्रौ तस्तारस्तूपमण्डले ॥ (राज० अ. १) __ . इस श्लोक में 'जिनशासन' शब्द स्पष्टतः जैनधर्म का द्योतक है। तदपि कतिपय विद्वान् इसे बौद्धधर्म के लिए प्रयुक्त मानते हैं। परन्तु यह मानना असंगत है। बौद्धधर्म में जिन शब्द का प्रयोग क्वचित् ही हुआ है और जैनधर्म का नामकरण तक इस शब्द से हुआ है अतः जिनशासन स्पष्टतः. जैनधर्म का सूचक है। राज तरंगिणी में अन्यत्र काश्मीर के राजा मेघवाहन को जैनों के समान हिंसा से घृणा करने वाला लिखा है। इस उल्लेख.से भी स्पष्ट है. कविं कल्हण ने, 'जिन' शब्द जैन के. अर्थ में ही प्रयुक्त किया है। ........ :: अबुलफजल ने, "आइने अकबरी" में काश्मीर का हाल लिखा है। उससे भी. इस बात का समर्थन होता है कि अशोक ने काश्मीर में जैनधर्म, का प्रचार किया था। : : :: :: :.....: :. : ..
अशोक ने अपने सप्तम स्तम्भलेख में कहा है कि उसके पूर्वजों ने धर्मप्रचार करने के प्रयत्न किये परन्तु वे पूर्ण सफल नहीं हुएं । यदि अशोक को बौद्ध अथवा ब्राह्मण मत का प्रचारक माने तो उसका धर्म वही नहीं ठहरता है जो उसके पूर्वजों का था । सम्राट चन्द्रगुप्त और बिन्दुसार ने जैनधर्म का प्रचार करने का प्रयत्न किया था। अतः अशोक का अपने पूर्वजों के . धर्म के प्रति श्रद्धा और उसका प्रचारक होना स्वाभाविक है । जिस धर्म का प्रचार करने में उसके पूर्वजों को उतनी सफलता नहीं मिली उसी का प्रचार kkakeskekokokiokes: (३२२) Kookokakkakekok. ..... इन्डियनएन्टी क्वेरी भा. २० पृ. २४३............................. -- १. मेन्युल ग्राफ बुद्धिज्म पृ. ११२; . . . . . . .
२.मंसूर एन्ड कुर्ग. . . . . . . . . . . ३. हिन्दी विश्वकोष भा, पृ. ३५०,
U