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* जैन-गौरव स्मृतियाँ *
ak जैनधर्म और पुरातत्व **
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. जैनधर्म सर्वथा मौलिक और अत्यन्त प्राचीन धर्म है । इस के आवि
. . विसवन्धी काल का पता लगाने के लिये आज से 'जैनधर्म की मौलिकता नहीं, सैंकड़ों वर्षों से वंद्विानों की दौड़ धूप हो रही है।
और प्राचीनता इस सम्बन्ध में विभिन्न धारणायें हैं। कोई कुछ कहता है तो कोई कुछ कहता. है। कल्पनाओं के सहारे दौड़ने का कहीं निश्चिंत अन्त नहीं होता। जैनधर्म अनादिकालीन है अतः इसके आदिकाल का पता लगाना असम्भवसा है।
: जिस प्रकार यह सृष्टि-प्रवाह अनादि-अनन्त है। जो वस्तु अनादि होती है उसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्रश्न ही नहीं उठ सकता। जैसे काल चक्र अनादि और अनन्त है तो उसकी उत्पत्ति के लिए कोई प्रश्न नहीं होता। यही बात जैनधर्म के सम्बन्ध में समझनी चाहिये । यह धर्मः काल-प्रवाह के समान अनादि अनन्त है। जिस प्रकार चन्दमा की कलाएं घटती-बढ़ती रहती हैं इसी तरह जैन धर्म भी वृद्धि-हानि पाता रहता है।
चन्द्रमा अपनी समस्त कलाओं से पृथ्वी को आप्लादि : 'कृष्णपक्ष की अमावस्या को वह तिरोहित हो जाता है। धर्म अपने समग्र रूप में प्रकाशित होता है और कभी ... ज्योति हीन हो जाती है। चन्द्रमा क्षीण हो जाता है और पुनः शु । नवीन उत्पत्ति नहीं समझी जा..