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* जैन-गौरव-स्मृतियां
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खण्डन हो जाता है कि जैनधर्म वेधंस की शाखा है । इस विषय का विवेचन पुरातत्व प्रकरण में किया जायगा । जैनधर्म का आजतक का इतिहास अत्यन्त समुज्वल रहा है। भारतीय
धार्मिक इतिहास इसकी सव्य गरिमा और गौरव गाथा से गौरवगाथा परिपूर्ण है। प्राचीन काल से जैनधर्म अपनी भव्य विचार
सरणी का प्रभाव भारतीय अन्य धनों की विचार धारात्रों पर डालता रहा है। भारत के दैनिक लोकजीवन पर जैन संस्कृति का अमिट प्रभाव मुलाया नहीं जा सकता । भारतीय लोकजीवन को जैनसंकृति ने बहुत ऊँचा उठाया है। - प्राचीन भारत के न केवल धार्मिक बल्कि राजनैतिक, सामाजिक साहित्यिक, आर्थिक और कलाकौशल के क्षेत्र में भी जैनधर्म का गौरवपूर्ण स्थान रहा है। धर्स और व्यवहार के प्रत्येक क्षेत्र में इस धर्म ने अपनी वैज्ञानिकता के द्वारा नये जीवन, नई क्रान्ति, नवीन प्रकाश और नबीन चेतना का संचार किया है । जिस जिस क्षेत्र में इसने प्रवेश किया उसको नवीन " रूप प्रदान किया।
जैनधर्म का प्रभाव उत्तर और दक्षिण भारत में समान रूप से पड़ा है। उत्तर भारत के शिलालेखों और अनुश्रुतियों से उन राजाओं की कीर्ति गाथाओं का पता चलता है जो जैनधर्म के अनुयायी या उसके संरक्षक थे । गुजरात के प्रसिद्ध सम्राट कुमार पाल जैन धर्म के परमानुयायी थे। दक्षिण भारत की जैन कीर्तियां इतिहास के पृष्टपृष्ठ पर अंकित हैं। दक्षिण में १२ वीं शताब्दी तक ऐसा कोई राजवंश नहीं हुआ जिस पर जैनधर्म का प्रभाव नहीं पड़ा हो । कदम्ब, गंग, रट्ट राष्ट्रकूट और कल चूर्य इन सब प्रमुख राजवंश का धर्म जैनधर्म था। उस समय जैनधर्म राष्ट्र धर्म था। राज्य प्रश्रय और राजनैतिक महत्व प्राप्र होने पर भी जैनाचार्यों ने कभी संकीर्णता को स्थान नहीं दिया। उन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थ और अपने प्रभुत्व की कमी चिन्ता न की। किसी भी धर्म के प्रति उन्होने संकीर्णता या द्वेष का व्यापार नहीं किया । राजनैतिक ... महत्व प्राप्त कर उन्होंने अहिंसा धर्म का अधिक से अधिक प्रसार करने का प्रयत्न किया । जैनाचार्यों ने जनता को वैज्ञानिक दृष्टि से विचार करने की बोधपाठ सिखाया । उन्होंने जनता को मनोवैज्ञानिक पथ प्रदर्शन किया।