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* जैन-गौरव-स्मृतियां Ra
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क्लेश, कलह, कटुता और क्रूर-क्रांति के कारण कहराती हुई मानवता को यदि कष्टों से मुक्ति पाना है तो सुख शान्ति के स्त्रोत रूप अहिंसा का आश्रय
लिए बिना नहीं चल सकता । अशांति रूपी राजयक्ष्मा से शांति का स्रोत छुटकारा दिलाने वाली यही रामवाणं. महौषधि है। ऐसे
. संकट काल में जो भी शांति दृष्टिगोचर होती है वह अहिंसा प्रधान जैन संस्कृति की ही अनुपम देन है अथवा यह कहना चाहिए कि यह अहिंसा से ओत-प्रोत जैनधर्म, इस रूप में विश्व के लिए अनुपम वरदान है।
जैनधर्म, आत्मा का अधिराज्य स्थापित करने वाला धर्म हैं । अध्यात्म इसकी आधार शिला है । यह भौतिकता के संकुचित क्षेत्र में आबद्ध न होकर
आध्यात्मिकता के विराट विश्व में उन्मुक्त होकर विचरण करने वाला है। इसका लक्ष्य चिन्दु इस दृश्यमान स्थूल संसार तक ही सीमिति नहीं वरन् विराट अन्तर्जगत् की सर्वोपरि स्थिति प्राप्त करना है। यह बाह्य क्रिया काण्डों को विशेष महत्व नहीं देने वाला, विशुद्ध आध्यात्मिक धर्म है ।
जैनधर्म, महान् विजेताओं का धर्म है। इस धर्म के आद्य उपदेशक 'जिन' है जिसका अर्थ महान् विजेता है । विजेता का अर्थ-दूसरों को जीतने वाला नहीं अपितु अपने आपको जीतने वाला है । आत्म विजेता ही सच्चा विजेता है। रण-संग्रास के विजेता सच्चे विजेता नहीं है क्योंकि उनकी विजय विजय पताका की तरह ही अस्थिर है। उनकी विजय कालान्तर में पराजय में परिणित हो सकती हैं । उनके द्वारा फहरायी हुई विजय-ध्वजा प्रतिक्षणं हिल-हिलकर उस विजय की स्थिरता को प्रकट करती है। जर्सन विचारक हर्डक ने कहा है:
"बड़े बड़े रणसंग्रामों में विजय पाने वाला वीर है, प्रचण्ड सिंहों को जीतने वाला वीर हैं परन्तु वह वीरों का भी वीर है-जो अपने आपको जीतता है।"
जिनेश्वर देव परम अध्यात्मिक विजेता हैं। उन्होंने अपने प्रबल आत्म बल के द्वारा समस्त अन्तरंग शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर उच्चत्तम आध्यात्मिक. साम्राज्य प्राप्त किया है। ऐसे महान विजेताओं का धर्म, जैन धर्म है।