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* जैन-गौरव-स्मृतियां
सार्वभौम सिद्धान्त उनमुक्त है अतएव इसके सिद्धान्तों में व्यापकता है,
महानता है, उदारता हैं और सार्वभौमिकता है । जिस प्रकार सत्य एक है, सनातन, है सर्वदेशीय है, सर्वकालीन हैं, और सदा . एक रूप में रहने वाला है इसी तरह सत्य से ओतप्रोत जैन सदा एक रूप में रहने वाला, सनातन, सर्वव्यापी और सब परिस्थितियों में समान रूप से हितकारी हैं।
प्रोफेसर हेल्मुट ग्लाजेनाप ( बर्लिन ) ने जैनिज्म नामक जर्मन ग्रन्थ में लिखा है कि "ब्राह्मण धर्म में वेद और उपनिषदों को, कलियुग के कारण पुराणों को और तंत्रके प्रभाव से अन्यशास्त्रों को अपना रूप बदलना पड़ा है, बौद्धधर्म में नये सूत्रों का सूत्रपात हुआ, आर्यमार्गों का सिद्धान्त प्रकट हुआ...
और उसके द्वारा त्रिपिटक में गूंथा हुआ बुद्ध का उपदेश विस्तृत और : परिपूर्ण हुआ, प्राचीन ईसाई धर्म में लिखे हुए प्रभुशब्द के अर्थ देवालय के सम्प्रदाय के कारण और उसके दिये हुए जीवन प्रणालि के नियम के कारण शिष्यों की अनुकूलता के अनुसार परिवर्तन होते गये परन्तु जैनधर्म के सिद्धान्त तो सबकाल में एक सरीखे हीरहे हैं। इस धर्म के निर्णित सिद्धान्त श्राज जिस रूप में दिखाई देते हैं उसी रूप में प्राचीन से प्राचीन ग्रन्थ में भी दिखाई देते हैं।"
उक्त विद्वान जर्मन प्रोफेसर ने जैनधर्म की एकरूपता और सनातनता का स्पष्ट रूप से प्रतिपादन किया हैं । जैनधर्म के सिद्धान्त सनातन हैं इस लिए काल के परिवर्तनों के विरुध्द भी वे एक रूप में टिके रहे हैं। अनन्त ज्ञानी पुरुषों ने अपने विशिष्ट ज्ञान के द्वारा इन सिद्धान्तों का प्ररूपण किया है अतएव ये त्रिकाल-अबाधित, सर्वदेशीय और सनातन सत्य हैं।
जैनधर्म के सत्य सनातन सिद्धांतों के पालन करने का अधिकारी न केवल मानव ही प्रत्युत पशुपक्षी भी हो सकता है । जैनधर्म के सिद्धान्त किसी वर्ग विशेष की सम्पति नहीं है । उन पर किसी देश या जाति का एकाधिकार नहीं है । इन पर किसी विशिष्ट समाज का आधिपत्य नहीं है। कोई भी एक समुदाय इसका ठेकेदार नहीं है । यह तो हवा और जल की तरह है कि जो भी इसे ग्रहण करना चाहता है, स्वतन्त्रता पूर्वक ग्रहण कर सकता है। जाति