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________________ ५३६ - D ९८ श्रीदशवकालिकसूत्रे उक्तमेवार्थ प्रकारान्तरेण द्रढयति-निच्चुधिग्गो' इत्यादि । मूलम्-निच्चुश्विग्गो जहा तेणो, अत्तकम्मेहिं दुम्मई । तारिसो मरणंतेऽपि, नाराहेइ संवरं ॥३९॥ छाया-नित्योद्विग्नः यथा स्तेनः, आत्मकर्मभिमंतिः ।। _ तादृशः मरणान्तेऽपि, न आराधयति संवरम् ॥ ३९ ॥ सान्वयार्थ:-जहा-जिस प्रकार तेणो चोर अत्तकम्मेहि अपने किये हुए दुश्चरित्रोंसे निच्चुबिग्गो-हमेशा व्याकुल वना रहता है, उसी तरह तारिसो-मदिरा पीनेवाला वह दुम्मई-दुर्बुद्धि साधु भी नित्य उद्विग्न वना रहता है, फिर वह मरणंतेवि-मरण समय तक भी संवरं संवरधर्मचारित्रको नाराहेइ-नहीं आराध सकता है, अर्थात् वह साधु जिन्दगीभर चारित्रसे वञ्चित रहता है ॥३९॥ टीका-यथा स्तेना-तस्करः आत्मकर्मभिः स्वकीयदुश्चरितः नित्योद्विग्नः= सदा व्याकुलः चित्तोपशान्तिरहितो भवति, तादृशः स्तेनसदृशः, यथा चौरः-- 'मदीयमिदं दुश्चरितं कोऽपि मा विद्यात् , अन्यथा राजगृहीतस्य मम प्राणाधप । हारो भवे-दिति चिन्तया कदाचिदपि चेतसि नोपशान्ति गच्छति, तथा मद्यसेवी साधुरपि स्वकीये दुश्चरिते प्रकटिते सति पूजाप्रतिष्ठादिमतिघातशङ्कया स्वकृत इसी विषयको दूसरी तरहसे कहते हैं-'निच्चुचिग्गो' इत्यादि। , जैसे चोर अपने कुकर्मोके कारण सदा व्याकुल बना रहता है अर्थात् उसे सदा यही भय बना रहता है कि मेरे कुकर्मको कोई जान न ले, नहीं तो राजा मुझे पकड़ लेगा और प्राणोंसे हाथ धोना पड़ेगा। इस प्रकारकी चिन्तासे चोरके चित्तमें सदा धुकधुकी (खल-बली) मची रहती है। उसी प्रकार मदिरा-पान करनेवाले मुनिके मनमें हमेशा असमाधि रहती है कि कहीं मेरामदिरा-पानका दुराचार प्रगट न होजाय, नहीं तो मान सम्मान सब मिट जायगा। इस प्रकारकी आशंकासे वह 2 विषयने भी शते थे-निच्चुग्विग्गो० त्यादि. જેમ ચેર પિતાના કુકર્મોને કારણે સદા વ્યાકુળ રહ્યા કરે છે, અથતિ તેને સદા એ ભય રહે છે કે મારા કુકર્મને કેઈ જાણી ન લે, નહિ તે રાજ મને પકડી લેશે અને પ્રાણ ગુમાવવા પડશે એ પ્રકારની ચિ તાથી ચારના ચિત્તમાં સદા ખળભળાટ મચ્યા કરે છે એજ રીતે મદિરાપાન કરનાર મુનિના મનમાં હમેશાં અસમાધિ રહે છે કે—કયાંક મારે મદિરાપાનને દુરાચાર પ્રકટ ન થઈ જાય, નહિ તે માન સન્માન બધુ નાશ પામશે એ પ્રકારની આશંકાથી તે
SR No.010497
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages623
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size28 MB
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