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अध्ययन ५ उ. १ गा. ३० - ३१ - निक्षेपणचतुर्भयः
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निक्षिप्य=एकस्योपर्यन्यस्य निक्षेपणं कृत्वा । निक्षेपणं च त्रिधा- सचित्तमचित्तं मिश्रं चेति, एतानाश्रित्य तिस्रश्चतुर्भङ्गयों भवन्ति । तत्र[१] सचित्ताऽचित्तयोश्चतुर्भङ्गी यथा
(१) सचि सचित्तस्य, (२) सचित्तेऽचित्तस्य, (३) अचित्ते सचित्तस्य, (४) अचित्तेऽचित्तस्य निक्षेपणम् । १ ।
[२] सचित्त मिश्रयचतुर्भङ्गी यथा
(१) सचित्त सचित्तस्य, (२) सचित्ते मिश्रस्य, (३) मिश्र सचित्तस्य, (४) मिश्र मिश्रस्य निक्षेपणम् । २ ।
[३] अचित्त - मिश्रयचतुर्भङ्गी यथा
(१) अचित्तेऽचित्तस्य, (२) अचित्ते मिश्रस्य, (३) मिश्रेऽचित्तस्य, (४) मिश्र निक्षेपण दोष तीन प्रकारका है - ( १ ) सचित्त, (२) अचित्त, और (३) मिश्र । इन तीनोंको आश्रित करके तीन चौभंगियाँ होती हैं । [१] सचित्त-अचित्तकी चौभंगी
( ९ ) सचित्तपर सचित्तका, (२) सचित्तपर अचित्तका, (३) अचित्त पर सचित्तका, (४) अचित्तपर अचित्तका । १ ।
[२] सचित्त मिश्रकी चौभंगी
(१) सचित्त पर चित्तका, (२) सचित्त पर मिश्रा, (३) मिश्रपर सचित्तका, (४ मिश्रपर मिश्रका निक्षेप करना । २ ।
[३] अचित्त-मिश्रकी चौभंगी
(१) अचित्त पर अचित्तका, (२) अचित्त पर मिश्रका । (३) मिश्रपर
निक्षेपायु होष त्रषु प्राश्नो छे (१) सयित्त, (२) सभित, (3) भिश्र. એ ત્રણને આશ્રિત કરવાથી ત્રણ ચૌલગી થાય છે.
[१] सचित्त-अभित्तनी योनंगी
(१) सत्ति पर सथित्ततु, (२) सचित्तयर अभित्तनुं, (3) अथित्त પર સચિત્તનું (૪) અચિત્તપર અચિત્તનું ૧ા
[२] सथित्त-भिश्रनी योलजी -
(१) सत्ति पर सवित्तनु, (२) सचित्त पर भिश्रनु, (3) मिश्र पर સચિત્તનું, (૪) મિશ્ર પર મિશ્રનું, નિક્ષેપણુ કરવું ારા
[3] अथित्त-भिश्रनी गौलगी -
(१) अत्ति पर अत्तिनु, (२) अत्ति पर भिश्रतु, (3) मिश्र पर