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श्रीदशवकालिको रात्रिमें, एगओ वा अकेला परिसागओ वा अथवा संघमें स्थित सुत्ते वा सोया हुआ जागरमाणे वा अथवा जागता हुआ रहे, वहाँ से बह यीएस्तु वा-शालि आदि वीजोंपर, वीयपइहेसु वा-बीजोपर रखे हुए शयन आसन आदि पर, रूढेसु वा अङ्कुरित वनस्पति पर, रूढपइहेसु वा अङ्कुरित वनस्पति पर रखे हुए शयन आसन आदि पर, जाएसु वा-पत्ते आनेकी अवस्थावाली वनस्पति पर, जायपइहेसु वा-पत्ते आनेकी अवस्थावाली वनस्पति पर रखे हुए शयन आसन आदि पर, हरिएसु वा-हरित पर, हरियपइटेसु वा हरित पर रखे हुए शयन आसन आदि पर, छिन्नेसु वा कटे हुए हरित पर छिन्नपइहेसु वा कटे हुए हरित पर रखे हुए आसन आदि पर, सचित्तेसु वा-फिर अन्य सचित्त अण्डा आदि सहित वनस्पति पर, सचित्तकोलपडिनिस्सिएसु वा-धुने हुए-सड़े काठ पर न गच्छेजा-गमन न करे, न चिट्ठज्जा-न खड़ा होवे न निसीइज्जान वैठे, न तुअहिज्जान सोवे, अन्नं-दूसरेको न गच्छावेज्जान चलावे न चिट्ठावेज्जान खडा करे न निसीयावेज्जान्न बैठावे, न तुअाविज्जाम्न सुलावे, गच्छंतं वाचलते हुए चितं वा-खड़े होते हुए निसीयंतं वा बैठते हुए तुयॉतं वा-सोते हुए अनं-दूसरेको न समणुजाणेज्जा-भला न जाने । जावज्जीवाए-जीवनपर्यन्त ( इसको )तिविह-कृत कारित अनुमोदनारूप तीन करणसे (तथा) तिविहेणं तीन प्रकारके मणेणं-मनसे वायाए बचनसे कारणं कायासे न करेमि-न करूँगा, न कारवेमिन कराऊँगा, करंतपिकरते हुएभी अन्नं दूसरेको न समणुजाणामि-भला नहीं समझूगा । भंते! हे भगवन् ! तस्स-उस दण्डसे पडिकमामि-पृथक होता हूँ, निंदामि आत्मसातीसे निन्दा करता हूँ, गरिहामि गुरुसाक्षीसे गर्दा करता हूँ, अप्पाणं-दण्ड सेवन करनेवाले आत्माको वोसिरामि त्यागता हूँ ||५||१९||
(५) वनस्पतिकाययतना. टीका-बीजेपु-शाल्यादिपु, वीजप्रतिष्ठितेपु-बीजोपरिस्थितेषु शयनाऽऽसनादिपु, एवमग्रेऽपि प्रतिष्ठितपटव्याख्या कार्या, रूढेपु-अङ्करितेपु, जातेपु-परो
(द) वनस्पतिकाययतना। शालि आदि धीजों पर,बीजों पर रक्खे हुए शय्याआसन आदि पर,अंकुरों
(५) वनस्पतिययतना. વગર આદિ બીજો પર, બીજે પર મૂકેલાં શસ્યા આસન આદિ પર,