________________
अध्ययन ४ स. १३ (६)-रात्रिभोजनविरमणव्रतम
२५९. मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि। तस्स भंते! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।छट्टे भंते ! वए उवडिओमि सबाओ राइभोयणाओ वेरमणं ॥१३॥ (६)
छाया-अथापरे पष्ठे भदन्त ! व्रते रात्रिभोजनाद्विरमणं, सर्व भदन्त ! रात्रिभोजनं प्रत्याख्यामि, अथ अशनं वा पानं वा खाधं वा स्वाचं वा नैव स्वयं रात्रौ भुजे, नैवान्यान् रात्रौ भोजयामि, रात्रौ भुञ्जानानप्यन्यान्न समनुजानामि, यावज्जीवया त्रिविधं त्रिविधेन मनसा वाचा कायेन न करोमि न कारयामि कुर्वन्तमप्यन्यं न समनुजानामि। तस्माद् भदन्त ! प्रतिक्रामामि निन्दामि गर्दै आत्मानं व्युत्सृजामि । पष्ठे भदन्त ! बते उपस्थितोऽस्मि सर्वस्माद्रात्रिभोजनाद्विरमणम् ॥१३॥ (६)
" (६) रात्रिभोजनविरमण सान्वयार्थः-भंते! हे भगवन् ! अहावरे इसके अनन्तर छठे-छठे वए= व्रतमें राइभोयणाओ=रात्रिभोजनसे वेरमणं-विरमण होता है, (अतः मैं) भंते! हे भगवन् ! सव्वं-सब प्रकारके राइभोयणं-रात्रिभोजनको पञ्चक्खामि त्यागता हूँ, से अब से लेकर मैं-असणं वा लड्डू पूरी घी सत्तू आदि अशन, पाणं वा-दूध शर्वत आदि पान-पीने योग्य, खाइमं वादाख खजूर आदि खाद्य, साइमं वा लोग इलायची आदि खाद्य, नेव-न सयं-स्वय राई-रात्रिमें भुंजिज्जा खाऊँगा, नेवन्नेहिन्न दूसरोंकोराई-रात्रिमें भुंजाविज्जा-खिलाऊँगा, राइ भुंजतेवि अन्ने-रात्रिमें भोजन करनेवाले दूसरोंकोभी न समणुजाणिजा भला नहीं: जानूंगा, जावजीवाए-जीवनपर्यन्त (इसको) तिविहं कृत कारित अनुमोदनारूप तीन करणसे (तथा) तिविहेणं-तीन प्रकारके मणेणं-मनसे वायाए वचनसे कारणं कायसे न करेमि=न करूँगा. न कारवेमिन्न कराऊँगा, करतंपि-करते हुएभी अन्नं दूसरेको न समणुजाणामि-भला नहीं समझूगा। भंते ! हे भगवन् ! तस्स-उस दण्ड से पडिक्कमामि-पृथक होता हूँ, निंदामि= आत्मसाक्षीसे निन्दा करता हूँ, गरिहामि गुरुसाक्षीसे गर्दा करता हूँ, अप्पाणं दण्ड सेवन करनेवाले आत्माको वोसिरामि-त्यागता हूँ, भंते ! हे भगवन् ! छटे-छठे वए व्रतमें उवढिओमि-उपस्थित होता हूँ, इसलिये मुझे सव्वाओ= सब प्रकारके राइभोयणाओ-रात्रिभोजनसे वेरमणं-विरमण त्याग है।१३॥(६)