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श्रीभगवती सूत्र
[६७ ] छः लेश्याओं के छः दंडक और सलेश्य का, एक इस प्रकार सात दंडकों से यहां विचार किया गया है । सरलता से सर झाने के लिए लेश्याओं की कोटियां बना ली गई है।
पहले नैरयिकों का जो वर्णन किया गया है, उसमें सामान्य नैरयिकों का प्रश्न था । लेकिन यहाँ यह प्रश्न हैभगवन् ! लेश्या घाले नारक समान प्राहारी हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान कहते हैं-गौतम ! सलेश्य नारकों के दो भेद हैं- अल्पशरीरी नैरयिक भी सलेश्य हैं और महाशरीरी नरयिक भी सलेश्य (लेश्यायुक्त) है । अतएव नारकियों के आहार आदि की वक्तव्यता पहले के ही समान समझ लेनी चाहिए।
आहार के विषय में जिस प्रकार प्रश्न किया गया है, उसी प्रकार शरीर, उच्छ्वाल, कर्म, वर्ण, लेश्या, वेदना, क्रिया और उपपात के लिए भी प्रश्न करना चाहिए । इसी प्रकार चोवीसों, दण्डकों को लेकर प्रश्न करने चाहिए ।
सामान्य रूप से सलेश्य का प्रश्न करने के पश्चात् कृष्ण लेश्या संबंधी प्रश्न प्राता है । वह इस प्रकार है-कृपा लेश्या वाले सव नारकी समान आहारी हैं ? इसके उत्तर में भगवान् फर्माते हैं-नहीं ! क्योंकि कृष्णलेश्या यद्यपि सामान्य रूप ले एक है, तथापि उसके अवान्तर भेद अनेक हैं । कोई कृष्णलेश्या अपेक्षाकृत विशुद्ध होती है, कोई अविशुद्ध होती है। एक कृष्णलेश्या ले नरकगति मिलती है और एक कृष्णलेश्या से भवनपात देवों में उत्पत्ति होती है । अतएव कृष्ण लेश्या में तरतमतर के भेद से अनेक भेद हैं । कृष्ण लेश्यावाले नार