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________________ श्रवणबेलगोल और दक्षिण के अन्य जैन तीर्थ सबसे अन्तिम वार गोम्मटस्वामी का महामस्तकाभिषेक सन् १९४० मे हुआ था। इसमे दूध, दही, केला, पुष्प, नारियल का चूरा, घृत, चदन, सर्वोपधि, इक्षुरस, लाल चंदन, वादाम, खारक, गुड, शक्कर, खसखस आदि वस्तुओ से और जल से अभिषेक कराया गया । ४८ १. परकोटा और उसमें मूर्तियां चामुण्डराय ने जब मूर्ति का निर्माण कराया, इसके चारो ओर कुछ न था । पश्चात् होय्यसल नरेश विष्णुवर्द्धन के सेनापति गङ्गराज ने मूर्ति की रक्षा के लिए एक परकोटा वनवाना आवश्यक समझा । इस परकोटे का निर्माण संभवत सन् १११७ ई० के लगभग हुआ । परकोटे के भीतर मण्डपों मे ४३ जिन-बिम्व निम्न प्रकार है । चन्द्रप्रभु व एक अन्तिम अज्ञात मूर्ति को छोडकर बाकी मूर्तियो पर लेख है । परकोटे के द्वार पर दोनो ओर छ छ फुट ऊचें द्वारपाल है । बाहर गोम्मटेश्वर के ठीक सामने छ फुट की ऊचाई पर ब्रह्मदेव स्तम्भ है | इसमे ब्रह्मदेव की पद्मासन मूर्ति है । ऊपर गुमटी है । स्तम्भ के नीचे पाच फुट ऊची गुलकायञ्ज की मूर्ति है । फुट "} नाम प्रतिमा ऊंचाई फुट १ कुष्माडिनी - पद्मासन ३ २ चन्द्रप्रभु खड्गासन ३” ३ पार्श्वनाथ ५," ४ गातिनाथ ४१ नाम प्रतिमा ऊंचाई फुट ५ ऋषभदेव ६ नेमनाथ ७ अजितनाथ ८ वासुपूज्य ५ 11 ५," ४ ४ 11
SR No.010490
Book TitleShravanbelogl aur Dakshin ke anya Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkrishna Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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