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श्रवणवेल्गोल और दक्षिण के अन्य जैन-तीर्थ
प्रतिष्ठाकर्ता के लिए लग्नकुण्डली का फल
सूर्य
जिस प्रतिष्ठापक के प्रतिष्ठा-समय द्वितीय स्थान मे सूर्य रहता है, वह पुरुप बडा भाग्यवान् होता है। गौ, घोड़ा और हाथी आदि चौपाये पशुओ का पूर्ण सुख उसे होता है। उसका धन उत्तम कार्यो मे खर्च होता है । लाभ के लिए उसे अधिक चेष्टा नही करनी पड़ती है । वायु और पित्त से उसके शरीर मे पीडा होती है। चन्द्रमा का फल
यह लग्न से चतुर्थ है इसलिए केन्द्र में है साथ-ही-साथ उच्च राशि का तथा शुक्लपक्षीय है। इसलिए इसका फल बहुत उत्तम है। प्रतिष्ठाकर्ता के लिए इसका फल इस प्रकार हुआ होगा।
चतुर्थ स्थान मे चन्द्रमा रहने से पुरुष राजा के यहाँ सव से वडा अधिकारी रहता है । पुत्र और स्त्रियो का सुख उसे अपूर्व मिलता है। परन्तु यह फल वृद्धावस्था में बहुत ठीक बटता है। कहा है
"यदा बन्धुगोवान्धवैरत्रिजन्मा नवद्वारि सर्वाधिकारी सदैव" इत्यादिभौम का फल
यह लग्न से पचम है इसलिए त्रिकोण मे है और पचम मंगल होने से पेट की अग्नि बहुत तेज हो जाती है । उसका मन पाप से बिलकुल हट जाता है और यात्रा करने मे उसका मन प्रसन्न रहता है। परन्तु वह चिन्तित रहता है और