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३२ श्रवणवेल्गोल और दक्षिण के अन्य जैन-तीर्थ पूछा । उन्होने बतलाया कि मूर्ति निर्माण पर जो तुझमे कुछ गर्व की आभा-सी आ गई है, इसलिए दुग्ध कटि से नीचे नही उतरता । उन्होने आदेश दिया कि जो दुग्ध वृद्धा गुल्लिकाया अपनी कटोरी मे लाई है उससे अभिपेक कराओ। चामुण्डराय ने ऐसा हो किया, और उस अत्यल्ल दुग्ध की धारा गोम्मटेश के मस्तक पर छोडते ही न केवल समस्त मूर्ति का अभिषेक हुआ, वल्कि सारी पहाडी दुग्वमय हो गई। चामुण्डराय को ज्ञान हुआ कि इतनी मेहनत, इतना व्यय और इतना वैभव भक्ति भरी एक दुग्ध की कटोरी के सामने तुच्छ है ।
इसके पश्चात् चामुण्डराय ने पहाडी के नीचे एक नगर बसाया और मूर्ति के लिए ९६,००० वरह की आय के गांव लगा दिए । अपने गुरु अजितसेन के कहने पर उस गाव का नाम श्रमणवेल्गोल रखा और उस गुलकायज्जि वृद्धा की मूर्ति भी वनवाई।
'गोम्मटेश्वर चरित' मे लिखा है कि चामुण्डराय के स्वर्णवाण चलाने से जो गोम्मट की मूर्ति प्रकट हुई थी, चामुण्डराय ने उसे मूर्तिकारो से सुघटित करा कर अभिषिक्त और प्रतिष्ठित कराई।
__ 'स्थलपुराण' के अनुसार चामुण्डराय ने मूर्ति के हेतु एक लाख छयानवे हज़ार वरह की आय के ग्रामो का दान दिया ।
राजावलिकथा के अनुसार प्राचीन काल मे राम, रावण और रावण की रानी मन्दोदरी ने बेलगोल के गोम्मटेश्वर की वन्दना की थी।