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श्रवणबेलगोल और दक्षिण के अन्य जैन तीर्थ
प्राप्त करके सिद्धत्व पा लिया, समस्त ससार ने जिन पर नमेरु पुष्पो की वर्षा देखी, उन पुप्पो की चमक और दिव्य सुगन्ध परिधिचक्र से आगे चली गई । गोम्मटेश्वर के मस्तक पर पुष्पवृष्टि देखकर स्त्री, पुरुष, बालक और पशु समूह भी हर्पित हो उठा । वेल्गोल के गोम्मटेश्वर के चरणो पर पुष्पवृष्टि ऐसी प्रतीत होती थी, मानो उज्ज्वल तारा समूह उनके चरणो की वन्दना को आया हो । बाहुबली पर ऐसी पुष्पवृष्टि या तो उस समय हुई थी, जब उन्होने द्वन्द्व युद्ध में भरत को परास्त किया या उस समय हुई जब उन्होने कर्मशत्रुओ पर विजय प्राप्त की ।
अय प्राणी ! तू व्यर्थ जन्म रूपी वन में भ्रमण कर रहा है। तू मिथ्या देवो में क्यो श्रद्धा करता है ? तू सर्वश्रेष्ठ गोम्मटेश्वर का चिन्तन कर । तू जन्म, बुढापा और खेद से मुक्त हो जायगा ।
गोम्मटेश्वर की यह विशाल मूर्ति देशना कर रही है कि कोई प्राणी हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह में सुख न माने, अन्यथा मनुष्य जन्म वेकार जायगा ।
बाहुवली को निरपराध स्त्रियो का विलाप भी न रोक सका। उनका रोना उनके कानो तक नही पहुँचा । विना कारण परित्याग करने पर उनको वसन्त ऋतु, चन्द्रमा, पुष्प धनुष और वाण ऐसे प्रतीत होते थे, जैसे नायक के विना नाट्य मडली । वाविया और शरीर पर लिपटी हुई माधवी लता वतला रही है कि पृथ्वी विना कारण परित्याग के सिमट गई हो और लतारूप शोकग्रस्त स्त्रियो ने उनको