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ऐतिहासिक इतिवृत्त
विवेक को न छोडा। उसने अपने बड़े भाई को अपने कधो पर धारण किया। इस प्रकार वाहुवली ने अपने बड़े भाई का गौरव रखा। स्वभावतः बाहुवली के पक्षवालो ने आल्हादित हो कोलाहल किया और भरत के पक्षवाले लज्जित हुए ।
चक्रवर्ती इस पराजय पर खिसयाना हुआ और क्षोभ मे अन्धा होकर युद्ध-सम्बन्धी प्रतिज्ञा को भग करते हुए उसने चक्ररत्न का स्मरण किया । चक्र को बुलाकर और निर्दय होकर भरत ने वह चक्र बाहुबली पर चला दिया, परन्तु वह चक्र वाहुवली के अवध्य होने के कारण वाहुबली की प्रदक्षिणा देकर निस्तेज हो भरत के पास वापिस आ गया।
इधर कुमार बाहुबली ने सोचा कि देखो ! हमारे बडे भाई ने इस नश्वर राज्य के लिए हमें मारने का कैसा जघन्य कार्य किया। यह साम्राज्य क्षणभगुर है, फलकाल मे दुख देनेवाला है, व्यभिचारिणी स्त्री के समान है । अहा | विषयो मे आसक्त पुरुष इन विषयजनित सुखो का निन्द्यपना, अपकार, क्षणभगुरता और नीरसपने को नही सोचते । विषयो का जैसा उद्वेग है, वैसा उद्वेग शस्त्रो का प्रहार, प्रज्वलित अग्नि, वज्र, विजली और बड़े-बडे सर्प भी नहीं करते। भोगो की इच्छा करनेवाले मनुष्य वडे-बडे समुद्र, प्रचण्ड युद्ध, भयकर वन, नदी और पर्वतो में प्रवेश करते है। वज्रपात जैसे कटु शब्दो को सहन करते है। भोगातुर प्राणी हित-अहित को नहीं जानता। शरीर का बल हाथी के कान के समान चचल है। जीर्ण शीर्ण गरीर रूपी झोपडा रोगरूपी चूहो के द्वारा नष्ट किया जाता है। इस प्रकार बाहुबली ने संसार को