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श्रवणबेलगोल और दक्षिण के अन्य जैन तीर्थ
वाहुवली २४ कामदेवों में प्रथम कामदेव थे । उनके केश भ्रमर के समान काल, वक्ष स्थल चौडा, विस्तृत ललाट और भुजाए लम्बी थी । उनकी दोनो जघाए केले के स्तम्भ के समान थी ।
एक दिन भगवान् ऋषभदेव राज्यसिंहासन पर बैठे हुए थे । उस समय इन्द्र अप्सराओ और देवो के साथ भगवान के राज्य दरबार मे आया । भगवान राज्य और भोगो से किस प्रकार विरक्त होगे यह विचार कर इन्द्र ने उस समय नृत्य करने के लिए एक ऐसे पात्र को नियुक्त किया जिसकी आयु अत्यन्त क्षीण हो गई थी । वह नीलाजना नाम की सुरचाला नृत्य करती हुई आयु के क्षय होने से क्षणभर मे विलय को प्राप्त हो गई। इस घटना ने भगवान के चित्त पर गहरा प्रभाव डाला । उन्होने सोचा कि यह जगत विनश्वर है, लक्ष्मी विजली के समान चचल है । यौवन, शरीर, आरोग्य और ऐश्वर्य सभी चलाचल है । यह जीव रूप, यौवन और सौभाग्य के मद में उन्मत्त हुआ वृथा इनमे स्थिरबुद्धि रखता है । इस प्रकार भगवान ऋषभदेव काललब्धि को पाकर मुक्ति के मार्ग मे समुद्यत हुए । उन्होने अपने वस्त्राभूषणों को जीर्ण तृण के समान सारहीन समझकर उतार डाला, सुकोमल करो से केशो का लोच किया और पूर्ण दिगम्बर मुद्रा धारण कर वे वन मे जाकर चन्द्रकान्तिमणि सदृश स्वच्छ शिला पर आसीन होकर ध्यानमग्न हो गये । भगवान ने वहुत समय पर्यन्त कठिन तपश्चरण करते हुए अन्त मे शुक्लध्यान की तीक्ष्ण खड़ग से दिव्य