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(७. )
गानतान, मान सन्मान आदि कुछ भी नहीं
है तो फिर सुख किस वातका ? उत्तरः खान पान आदि से अपन सुख मानते हैं
परन्तु वास्तव में वे पदार्थ सुखरूप नहीं हैं। क्योंकि जिस वस्तु में सुख देनेका स्वभाव होता है वह हमेशा सुखदायक ही होना चाहिए, मगर अमुक समय तक मुख देने के बाद वही वस्तु दुःख में परिणमें उसको सुखदाता कैसे कही जाय ? जैसे कि खीर का स्वाद मीठा है और उसको खाने से अपने को सुखका अनुभव होता है, वही खीर पेट भर खालेने के बाद उसके उपर से जन रुची उतर जाती है उस वक्त यदि .. कोई शख्स बलात्कार से अपने को खीर पिलाते ही रहें तो वही खीर दुःख का और कचित् मृत्यु का कारण रूप भी हो जाती है। पांचों इन्द्रियों के विषय भोगकी
यही दशा है. (११) प्रश्नः तब सच्चा सुख किसको कहा जाय ? उत्तरः जिस सुखका अन्त दुःख रूप न होवे जो
हमेशा ही सुख रूप रहे वही सच्चा सुख है. (१२) प्रश्नः मोक्ष में जो अनंत सुख हैं वह उनको किस
चीनमें से मिलते हैं ? याने उनके पास मुख प्राप्त करने के
से साधन