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________________ (५४) रस परित्याग-रस का परित्याग करके . लूखा आहार करना सो. काय क्लेश-देह को ज्ञान सहित करणी _ करने में कष्ट देना सो. प्रति संलिनता-इन्द्रियों को वश में रखना सो. . (१४) प्रश्रः आभ्यन्तर तप कितने प्रकार का है ? उत्तरः छै. प्रायश्चित-किये हुए पापों का पश्चाताप करना तथा गुरु के पास उन पापों को प्रगट करके उनका दंड लेना सो. विनय-गुरू तथा वडों का विनय करना सो. वैयावृत्य-दश प्रकार का वैयावच्च करना सो. स्वाध्याय-शास्त्र का अध्ययन व पर्यटन करना सो. ध्यान-धर्म ध्यान तथा शुक्ल ध्यान में ___ आत्मा को जोड़ना सो. कायोत्सर्ग-काउसग्ग याने शरीर पर से भूच्छाभाव कम करके . ध्यान में निश्चल रहना सो . (-५) प्रश्नः निर्जरातत्व के कितने भेद हैं ? .. उत्तरः बारह ( उपर जो बारह भेद तप के कहे . चे वारह प्रकार से कर्मों की निर्जरा होती . है अतएव निर्जरा के भी वेही १२ प्रकार हैं)
SR No.010488
Book TitleShalopayogi Jain Prashnottara 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharshi Gulabchand Sanghani
PublisherKamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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