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________________ (५२) प्रकरण २३. . निर्जरा तत्त्व (१) प्रश्नः संसार के जीव जन्म, जरा, मृत्यु, व रोगा दिक दुःख किस कारण से पाते हैं ? उत्तरः किये हुवे कर्मों के उदय से. (२) प्रश्नः कोई भी जीव सव दुःखों से मुक्त कवं हो सकता है ? उत्तरः कर्म बन्धन से सर्वथा मुक्त होवे तव. (३) प्रश्नः जीव कर्म मुक्त कैसे हो सकता है ? उत्तरः नये आते हुवे कर्मों को अटकाने से व पुराने का को क्षय करने से जीव कर्म मुक्त हो सकता है. (४) प्रश्नः कर्म कहां से आता है, आते हुवे को किस तरह रोक सकते हैं और किस तरह उस का क्षय हो सकता है ? उत्तरः आश्रव रुप द्वार से कर्माता है, संवर रुप .. किवाड़ से उसको आते हुवे को रोक सक ते हैं, और निर्जरा से पूर्व कर्म को तय क र सकते हैं. (५) प्रश्नः निर्जरा किसे कहते हैं. ? ___ उत्तरः आत्मप्रदेश से बारह प्रकार की तपश्चर्या कर देशसं कमे का दूर होना इसका नाम निजरां तत्व है, (६) प्रश्नः निर्जरा के मुख्य कितने भेद हैं ?
SR No.010488
Book TitleShalopayogi Jain Prashnottara 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharshi Gulabchand Sanghani
PublisherKamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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