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________________ (४१) पढा हुवा होवे वा अच्छा उपदेश देने . वाला होवे तो क्या वह अपन को तार नहीं सकता है ? उत्तरः जो खुद ही डरता है वह दूसरे को कैसे तार सन्सा है? जो जुद दरिद्री है वह दूसरे को करो धनवान बना सकता? कुछ नहीं कर सकता . न करन राले कुगुरुनों अपने मुला पसद्गुणों मनाने की कोशीश करते हैं जैसे कि कोई कहता है कि सिओं के साथ प्रेम किये बिना प्रभु के साथ प्रेम हो सकता नहीं है. ग.ई कहता है कि पुत्र वगर मर जाते हैं उनको स्वर्ग मिलती नहीं है " पुत्रस्य गति स्ति" एंसे ऐसे असत्य उपदेश देकर अज्ञान पामर व भोले लोगों को भ्रमाते हैं ऐसे गुरुओं खुद उन्टे रास्ते जाते हैं व दूसरे को भी अपने पीछे २ लगाते हैं इस वास्ते उनके संग से हर हमेश दूर रहना चाहिए (१०) प्रश्नः सुगुरू कैसे होते हैं ? उत्तरः जिन्होंने हिंसा, झूठ, चोरी, स्त्री संग व परिग्रह को सर्व प्रकार से छोडकर पंच पहावत धारण किये हैं याने उपरोक्त दूपण का.सेवन करते नहीं हैं, दूसरों से कराते नहीं है.व. नो सेवता है उसको अच्छा समझते नहीं है, और जो मिक्षाचारी से
SR No.010488
Book TitleShalopayogi Jain Prashnottara 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharshi Gulabchand Sanghani
PublisherKamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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