SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ( ८०.) उत्तरः जाति, कुल, बल, रूप, तथा ऐश्वर्य यादि उच्च प्रकार के प्रशंसनीय जहां होवे उसको उच्च गोत्र कहते हैं. (३७) प्रश्नः नीच गोत्र किसे कहते हैं ? उत्तरः जाति, कुल, बल, रूप तथा ऐश्वर्य श्रादि जहां हलके प्रकार के होवे, प्रशंसा करने योग्य न होवे उसको नीच गोत्र कहते हैं । (३८) प्रश्न: अंतराय कर्म के कितने भेद है ? उत्तरः पांच, दानांतराय, लाभांतराय, भोगांतराय उपभोगांतराय और वीर्यंतराय । ( ३६ ) प्रश्न: दानांतराय कर्म किसे कहते हैं ! उत्तर: जिसके उदय से जीत्र योग्य सामग्री तथा पात्र का संयोग होते हुए भी दान नहीं दे सकते हैं उसको दानातराय कर्म कहते हैं. (४०) प्रश्न: लाभांतराय कर्म किसे कहते हैं. उत्तरः जिसके उदय से जीव को अनुकूल संयोग होने पर भी लाभ की प्राप्ति न होवे उसको 'लाभांतराय कर्म कहते हैं. ( ४१ ) प्रश्न: भोगांतरीय कर्म किसे कहते हैं? उत्तरः + भोगकी सामग्री होते हुए भी जीव जिसके * जाति पांच हैं एकेंद्रिय, वेईद्रिय, तेइंद्रिय, चतुरिंद्रिय. व पंचेंद्रिय, + वस्त्र, आभूषण स्त्री; घर आदिको भोगने का नाम भोग है.
SR No.010488
Book TitleShalopayogi Jain Prashnottara 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharshi Gulabchand Sanghani
PublisherKamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy