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________________ सत्य : ६३ तथा सावधान रह कर, असत्य को त्याग कर, हितकारी मत्य ही बोलना चाहिए। इस तरह सत्य बोलना बड़ा कठिन होता है। , यह सत्य हो लोक मे सारभूत है, जो महासमुद्र से भी अधिक गम्भीर है। जो विद्वान् सत्यमार्ग पर चलता है, वह ससारसागर को पार कर जाता है। सत्य मे बढ़ रहने वाला मेधावी साधक सब पापों को नष्ट कर डालता है।। सत्य के नाम पर भी भगवान् महावीर ने एक बहुत बड़ी क्रान्ति की थी। दूसरे धर्म और दर्शन ईश्वर को प्रधानता दे रहे थे, सारे सदनुष्ठानो का केन्द्र भगवान् माना जा रहा था। साधना का लक्ष्य एकमात्र भगवान् को प्रसन्न करना था। यज्ञ, तप, स्वाध्याय, उपासना, व्रत, सदाचार की सब धार्मिक क्रियाएँ उसे रिझाने के लिए ही चल रही थी। व्यक्ति की पूजा को P-निच्चकालऽप्पत्तण, मुसावाय-विवजण । भासियध्वं हियं सच्च, निच्चाऽऽउत्तरण दुक्करं ।। -उत्तरा० १६/२६ २--'सच्च लोगम्मि सारभूय, गभीरतर महासमुद्दाओ।' --प्रश्नव्याकरण ३- सच्चस्स आणाए उवहिए मेहावी मार तरइ ।' -आचाराग ३/३/१२ ४--'सच्चस्मि धिइ कुब्बिहा, एत्थोवरए मेहावी सव्य पाव झोसइ ।' -आचाराग ३/२/५
SR No.010480
Book TitleSanmati Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSureshmuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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