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आत्मा का असर व्याख्याकार ७५.
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ले जाना है, जहाँ मानवता पतनोन्मुख होने की अपेक्षा कान्तिमान हो उठती है। जड़वादियो ने उसे 'नास्तिक' कहा, पर वह 'नास्तिक' संसार को श्रात्मा की अमर व्याख्या दे गया । वह हर इन्सान से यह आशा करता है कि वह अपने जीवन मे अहिसा का दामन पकडकर चले । उसकी दृष्टि मे वही समाज सदा सुखी रह सकता है, जिसने हिसा-मूलक नैतिक गुणो को अपने जीवन में आत्मसात् कर लिया है। व्यक्ति की नीव पर समाज का भवन खडा है । और यदि व्यक्ति ही पतित है, तो वह किस प्रकार उन्नत समुन्नत हो सकता है ? उस का मत है - "मानव स्वभाव निम्न व पतित होने की अपेक्षा उच्च एव दिव्य है । मानवो के सम्पूर्ण पापो को वह उनके स्वभाव की अपेक्षा उनकी बीमारी समझता है । दूसरे शब्दो में, पाप मनुष्य की अज्ञानता से उत्पन्न वे चेष्टाएँ है, जिन्हे दूर किया जा सकता है । "
सचमुच महावीर वर्गो से ऊपर उठकर सत्य का सच्चा व्याख्याता है | उसने समाज का ध्यान मानवात्मा के सौन्दर्य की ओर खीचा और उस सौन्दर्य मे उसने अहिसा एव सत्य का रंग भरकर समाज तथा राष्ट्र को शिवत्व की उपासना मे लीनतल्लीन किया | उसने कहा- "जीवन ही सच्ची शक्ति का स्रोत है । जीवन ही सच्चा धन है, वह जीवन जिसमे अहिंसा, सत्य,
नन्द और सद्भावना की लहरियाँ उठती है । वही राष्ट्र सब से अधिक धनवान है, जिसकी गोद मे अधिकाधिक उदार विचार