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प्राणशत्रु पर भी अमृत-वर्षा
साधना-पथ पर आगे बढ़ते हुये महावीर को तन-मन में सिहरन पैदा कर देने वाली कठिनाइयो की अनेक पर्वतमालाओं को पार करना पड़ा । घोर-से-घोर उपसर्ग की जहरीली चूंट को भी समभाव के मधुर सस्पर्श से अमृत बना देना, उनकी जीवन-कला का जीवित परिचय था। विरोधी-से-विरोधी पर भी उनके तन-मन-नयन से क्षमा एव वात्सल्य का अमृत-वर्षण होता रहता था। ___ एक बार महावीर नदी के तट पर ध्यानस्थ खडे थे । चारों
और जगल की हरियाली लहलहा रही थी। शीतल, मन्द, सुगन्ध समोर बह रहा था। महावीर नेत्र बन्द कर आत्म-लीन हो अपने-आप में अपने द्वारा अपने-आप को खोज रहे थे।