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सर्वज्ञता पर श्रद्धा
और इस प्रकार जैन तत्त्व-ज्ञान से ही असहमत हो जायगा।
विश्व मे ज्ञेय वस्तुएँ अनन्त-अनन्तानन्त है । छद्मस्थ जीव, सख्यात वस्तुओ का आशिक प्रत्यक्ष ज्ञान कर सकता है, शेष अनन्तानन्त वस्तुओ के विषय मे वह नही जानता। प्रत्येक छद्मस्थ जीव, अनन्तानन्त ज्ञेय वस्तुओ के विषय मे अनजान है। जब एक मनुष्य मे अनन्तानन्त अज्ञान माना जा सकता है, तो किसी एक मे अनन्तानन्त ज्ञान क्यो नही माना जाता ?
अनपढ जीव अनन्त हैं, पढे लिखे मनुष्य थोड़े ही होते हैं। उनमें भी साधारण पढे लिखे अधिक और विशिष्ट विद्वान् थोडे । उन विशिष्ट विद्वानो मे भी ज्ञान की तरतमता होती है। कोई किसी एक विषय मे अधिक अनुभव रखता है और दूसरे विषय मे थोड़ा, तथा शेष विषयो मे अनभिज्ञ । इस प्रकार करोडो मनुष्यो मे अधिक विषयो को गहराई के साथ जानने वाले इतने थोडे होगे कि जो अंगुलियो पर ही गिने जा सके। जबतक ग्रामोफोन, टेलिग्राफ, रेडियो, हवाईजहाज, अणबम आदि प्राश्चर्य जनक वस्तुओ का आविष्कार नहीं हुआ था, तब तक दुनिया के सभी मनुष्य इन वस्तुओ के ज्ञान से अनभिज्ञ ही थे । एक भी मनुष्य इन चीजो को नही जानता था। सबसे पहले इन वस्तुओ का ज्ञाता एक ही व्यक्ति हुआ । वर्तमान संसारभर में एक मात्र वही इसका ज्ञाता था और उसी ने आविष्कार करके संसार को आश्चर्य में डाल दिया । यद्यपि जैन मान्यतानुसार इस अनादि संसार मे ऐसे आविष्कार अनन्तवार हो चुके. तथापि ऐतिहासिक दृष्टि से ये वस्तुएँ वर्तमान युगो में बिलकुल नयी और सर्व प्रथम ही मानी जायगी। अभी ऐसी कितनी ही वस्तुएँ छुपी हुई