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मार्ग एक या अनेक ?
मत के अनेक मार्ग रूप मिथ्यात्व के प्रथम गुणस्थान से तीसरे गुणस्थान मे आकर आगे बढ़ते है, तो कोई तीसरे को छोडकर चौथे मे आकर आगे बढते है । कोई चौथा भी छोड़कर पांचवे मे पहुँच जाता है और कोई कोई भव्यात्मा, प्रथम गुणस्थान से छलाग मारकर सीधे सातवे गुणस्थान मे पहुँच जाती है। इसके बाद तो सभी को एक ही मार्ग पर पाना होता है और क्षपकश्रेणी के द्वार से गुजर कर ही मोक्ष-महालय मे पहुँचा जाता है।
___कई आत्माएँ चौथे गुणस्थान से ही मार्ग भ्रष्ट होकर तीसरे, दूसरे, या पहले गुणस्थान मे पहुँच जाती हैं। कई पांचवे से भटक जाती हैं और कई छठे से । वापिस लौटने की स्थिति दसवे गुणस्थान तक है । ग्यारहवे गुणस्थान मे चली जाने वाली प्रात्मा तो निश्चय ही लौटती है।
आठवे गुणस्थान से दो मार्ग निकलते हैं-उपशम और क्षपक । जो उपशम श्रेणी चढा, वह ग्यारहवे गुणस्थान पर पहुँच कर रुक जाता है। उसे वहाँ से लौटना ही पड़ता है। यदि उस प्रात्मा ने वहाँ पहुँच कर, उसी गुणस्थान मे मृत्यु प्राप्त करली, तो वह सर्वार्थसिद्ध महाविमान (छोटी मोक्ष) मे जाकर ३३ सागरोपम तक देव सम्बन्धी परम सुख भोगती है और वहाँ से मर कर मनुष्य होती है । फिर उसे चौथे गुणस्थान से आगे बढ़कर क्षपकश्रेणी के एक मात्र मार्ग से ही मोक्ष महल में पहुंचना होता है । इसके सिवाय दूसरा मार्ग है ही नही ।
अनेक मार्ग वहाँ होते हैं-जहाँ से अनेक स्थानो परअनेक दिशाओ में जाया जाता है । जाने वाले भी बहुत होते