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तीन कषायो भी सम्यग्दृष्टि ?
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नही है । उनका यह क्रोध, थोड़े समय टिकने वाला है । युद्ध क्षेत्र छोड़ने पर उनके चेहरे पर क्रोध की रेखा भी नहीं रही। इसके पूर्व भी उन्हे अपनी आत्मा का और व्रत का ध्यान था ही। अतएव उग्र क्रोधावेश के समय भी वे सम्यगदष्टि माने जा सकते है, भले ही उनमे उस समय भावरूप से कृष्ण लेश्या विद्यमान हो । सम्यगदृष्टि मे छहो लेश्याएँ होती है।
दशाश्रुतस्कन्ध दशा ६ मे ऐसे सम्यग्दृप्टियो का भी वर्णन है जो विषय कषाय और पाप-पक मे फंसे हुए है। वहा मूलपाठ में लिखाकि
“से भवइ महिच्छे महारंभे महापरिग्गहे, अहम्मिए, अहम्माणुए ... जाव उत्तरगामिए नेरइए सुक्कपक्खिए आगमेस्साणं सुलभबोहिए यावि भवई । से तं किरियावाई।" ___ इस प्रकार के महान् इच्छावाले, महान् आरंभ और परिग्रह वाले अधार्मिक और अशुभ परिणति वाले को भी मूलपाठ मे'किरियावाई, आहियवाई आहियपन्ने, आहियदिट्ठी और सम्मावाई' आदि विशेषण से सम्यग्दृष्टि माना है और वह मरकर उत्तरदिशा की नरक में जाता है। इसमें से कोई २ ऐसे भी होते हैं कि अनन्तकाल, अनन्त अवसर्पिणी उत्सपिणिरूप अर्द्ध 'पुद्गल-परावर्तन' काल तक ससार में परिभ्रमण करते हुए अनन्त जन्म मरण करते रहते है, किंतु एक बार प्राप्त हुआ सम्यग्दर्शन, अन्त में उन्हे मोक्ष पहुँचा ही देता है।
शंका-यदि यह माना जाय कि जिस समय उग्र क्रोधादि