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परीक्षक या अन्धविश्वासी ?
पतली कषायो वाले और शुक्ल लेश्या वाले होते हैं, फिर भी वे मिथ्यादप्टि हैं। उनसे भी बढकर ऊपर की ग्रेवेयक के देव, अधिक मन्द कषाय और विशेष शुद्ध शुक्ल लेश्या वाले होते हैं, किंतु उनमे मिथ्या दृष्टि भी होते हैं । अतएव कषायो की तीव्रता मदता पर भी सम्यग्दृष्टि का आधार नही है । कृष्ण लेश्या वाले जीवो मे भी सम्यग्दृष्टि होती है और शुक्ल लेश्या वाले जीवो मे भी मिथ्यादष्टि होती है।
शंका-फिर अनन्तानुबन्धी कषाय का अर्थ क्या है ?
समाधान-जो कषाय सम्यक्त्व गुण का घात करे अथवा सम्यग्दर्शन से वचित रखे, वह अनन्तानुबंधी कषाय होती है। वह मंद भी हो सकती है और तीन भी।
परीक्षक या अन्धविश्वासी ?
शंका-परीक्षा मे जो खरा उतरे उसे मानना सम्यग्दष्टि है, या अन्धविश्वास से ही दूसरो की बात मान लेना सम्यगदृष्टि हैं ?
समाधान-परीक्षा करना बुरी बात नही, किन्तु परीक्षा करने की योग्यता भी होनी चाहिए । संसार के सभी मनुष्य उदय-भाव की विचित्रता के कारण भिन्न २ दृष्टिकोण रखते हैं । एक ही वस्तु के विषय मे कई प्रकार के मतभेद देखे जाते हैं । खान-पान मे, रहन-सहन मे, बोल-चाल मे और अन्य ध्यवसाय मे रुचि भिन्नता प्रत्यक्ष देखी जाती है। प्रयेक की रुचि और विश्वास के अनुसार सम्यग्दर्शन का स्वरूप नही हो