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सम्यक्त्व विमर्श
श्रावक तथा साधु के व्रतो का निर्दोष रीति से पालन करते हुए भी यदि एक मोक्ष तत्त्व पर यथार्थ श्रद्धा नही हुई, तो वह असम्यग् दृष्टि ही माना जायगा। कषायो को मंद कर दिया जाय और शुक्ल लेश्या की परिणति अपना कर उच्चकोटि का जीवन बिताया जाय, पर सम्यग् दृष्टि के बिना यह सब प्रथम गुणस्थान में ही गिना जायगा ।
अनेकान्त शंका-आठ तत्त्वो पर यथार्थ श्रद्धा करते हुए और एक मात्र मोक्ष तत्त्व पर प्रश्रद्धा या थोड़ी विपरीत श्रद्धा होने मात्र से किसी को मिथ्यादृष्टि मान लेना, अनेकान्तवाद का उल्लंधन नही है ?
समाधान-नही, क्योकि अनेकान्तवाद केवल मोक्ष को ही नही मानता, वह स्वर्ग गति को भी मानता है, जिन्हे मोक्ष नही मानकर स्वर्गीय भौतिक सुखो को ही मानना है, वे तदनकल आचरण से स्वर्गीय सुख भी प्राप्त कर सकते हैं। किंतु जिसे मोक्ष प्राप्त करना है, उसे इतर लक्षो को छोडकर केवल एक ही लक्ष पर कायम रहना पडेगा, तभी वह मोक्ष पा सकेगा । व्यवहार मे भी सफल मनोरथ उसी के होते है, जो कार्य के अनुरूप एक लक्ष को अपनाकर आगे बढे । बबई जाने वाले को दिल्ली, कलकत्ता, मद्रास आदि स्थानो से लक्ष हटाकर एक बंबई की ओर ही अग्रसर होना पडेगा, तभी वह यथास्थान पहुँच सकेगा। अनेक दिशाओ को छोडकर ठीक