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सम्यक्त्व विमर्श anmarrrrrrrrrrrrrrrrrrrrn
-व्यवहार राशिगत सभी जीवो की ग्रेवेयक तक उत्पत्ति शास्त्रो मे कही है । अवेयक मे उत्पत्ति, विना उत्तम कोटि के अव्य चारित्र के नहीं होती।
इस प्रकार व्यवहार राशीगत सभी जीवों ने उत्तम द्रव्य चारित्र तो पाया, किंतु सभी जीवों को सम्यक्त्व की प्राप्ति नही हई । इसलिए उत्तम कोटि के द्रव्य चारित्र से भी सम्यक्त्व का, महत्व अधिक है।
जिनधर्म विनिर्मुक्तो, मा भुवं चक्रवर्त्यपि, स्यां चेटोऽपि दरिद्रोऽपि, जिनधर्माधिवासितः ।
- (सम्यग्दृष्टि की यह भावना होती है कि) जिनधर्म से रहित होकर चक्रवर्ती होना भी मुझे स्वीकार नही, किन्तु जिनधर्म युक्त दास एवं दरिद्र होना भी स्वीकार है।
तुह समत्ते लद्धे, चिंतामणी कप्पपाय वन्भहिए। पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ॥
भारजी ....
19881 .