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सम्यक्त्व विमर्श
मेरूव्व णिप्पकंपं णदृट्ठ-मलं तिसूढ उम्मुक्कं । सम्मइंसणमणुवममुप्पज्जइ पवयणब्भासा ॥
-प्रवचन (जिनागम) के अभ्यास से, आठ प्रकार के मल से रहित, तीन प्रकार की मढता से वचित और मेर के समान निष्कम्प ऐसे सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है। इसलिए आत्मार्थीजनो को नित्य ही जिन प्रवचन का श्रवण और पठन करते ही रहना चाहिए ।
आत्म बन्धुओ ! समझो । यह सम्यग्दर्शन ऐसी चीज नही है जो सब की अपनी मनमानी और घर जानी हो । थोडी-सी विपरीतता के कारण, जमाली मिथ्यादष्टि बन गया, तो अपन किस हिसाब मे है ? पूर्वो का ज्ञान धराने वाले भी मिथ्यादृष्टि हो जाते है, तो आजकल के थोथे विद्वान-कुतर्की पडितो पर विश्वास करके अपने दर्शन गुण से क्यो भ्रष्ट होते हो ? सम्यक्त्व, इन लौकिक पडितो या बड़े बड़े नेताओ की जेबो मे-स्वच्छन्द मस्तिष्क मे, या वाकपटता मे नही भरी है। वह है निग्रन्थ प्रवचन मे । सम्यग श्रद्धान की प्राप्ति परमदुर्लभ है । इस महान रत्न को सम्हाल कर रखो। तुम्हारी बुद्धि पर डाका डालकर इस रत्न को लूटने वाले लटेरे, साहुकारो के रूप मे कई पैदा हो गए है । उनकी मोहक और धर्म के लेवलवाली, मीठी शराब मत पी लेना । असल नकल की परीक्षा, निर्ग्रन्थ-प्रवचन अथवा ज्ञानी गुरु से करना। श्री प्राचाराग सूत्र १-५-६ मे लिखा है कि "पर-प्रवाद तीन तरह से तपासना चाहिए-१ गुरु परम्परा से २ सर्वज्ञ के उपदेश से ३ या फिर अपने जातिस्मरण ज्ञान