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आत्मदर्शन और सम्यग्दर्शन
गाडी मे बैठा । गाडी कहाँ बदलती है, बबई कब पहुँचती है, यह सब उसने स्टेशन पर पूछकर जान लिया और सूझबूझ से इच्छित स्थान पर पहुँच गया ।
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सोचने की बात है कि खेमराज ने कभी बंबई देखी ही नही थी, न वह किसी जानकार के साथ गया था, फिर भी मार्ग की थोडी-सी जानकारी लेकर ठीक बंबई पहुँच गया । इस सारे लोक की समस्त दिशा विदिशाओ और ग्रामो, नगरो को छोडकर बम्बई और जौहरी बाजार मे रही हुई सेठ रिखबदासजी की दुकान पर पहुँच गया । इसी प्रकार यदि कोई मनुष्य, किसी निमित्त से इतना जान ले कि - विरति का साधन, मोक्ष ( प्रात्मत्व ) प्राप्ति का प्रमोघ मार्ग है, जो विरत होता है, वह सफल हो सकता है । जैसे कि किसी व्यक्ति ने पहले देशविरत होकर अपनी श्राश्रव की प्रवृत्ति को संकुचित कर ली । असंख्य योजन के विस्तृत क्षेत्र मे भटकती हुई चित्तवृत्ति को सौ-पचास योजन मे सिमित करके, अपनी प्रवृत्तियो का सवरण कर लिया । अब उसकी आशा, तृष्णा, राग, द्वेष, काम आदि का स्थान असंख्यात योजन से घट कर थोडे-से योजनो मे श्रा गया । समस्त लोक मे श्राश्रव के अश्व पर सवार होकर भटकती हुई श्रात्मा के विचरण का केन्द्र, बहुत सीमित होगया और परिणति की तीव्रता मे मन्दता श्रा गई। थोड़े दिन बाद वह प्रतिमाधारी श्रावक हुआ । श्रब उसकी प्रवृत्ति का क्षेत्र एक योजन से भी कम हो गया । अब उसकी आत्मा की प्रवृत्ति बहुत कम क्षेत्र मे रह गई । पहले श्रसंख्यात योजन मे भटकती
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