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भौतिक विज्ञान की क्षुद्रता
साशयिक - मिथ्यात्व मे डाल दिया । इसके सिवाय कुमार्गगामी तर्कवादियो ने भी साशयिक- मिथ्यात्व को बढाने के बहुत कुछ दुष्कृत्य किये हैं । फिर भी सुविज्ञ श्रद्धालु धर्मबन्धुओ की श्रद्धा को सुरक्षित रखने का महान् अवलबन प्राज भी मौजूद है । उपस्थित आगमो मे जैनधर्म की आत्मा, अभी भी सर्वथा सुरक्षित है | जैनधर्म का महान् उद्घोष है कि-' सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप ही मोक्ष मार्ग है । और मोक्ष मार्ग ही जैनधर्म का लक्ष है । बध और उसके कारण हेय है, और मोक्ष तथा उसके कारण ( संवर निर्जरा ) उपादेय है ।' जो विधान उपरोक्त कसौटी के अनुकूल हो, वे सत्य है और विपरीत हो तथा लक्ष से दूर ले जाते हो, वे असत्य हैं । यदि समझने की इतनी बुद्धि हो, और हेय, ज्ञेय, उपादेय का विवेक हो, तो अपनी श्रात्मा को साशयिक मिथ्यात्व से बचाया जा सकता है ।
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" जिनेश्वर भगवंत वीतराग हैं, सर्वज्ञ सर्वदर्शी हैं ".इतना भी विश्वास हो और यह भी श्रद्धा हो कि - " वीतराग भगवत कभी भी आरभ - परिग्रह जन्य उपदेश नही देते," तो इस श्रद्धा के आधार पर सम्यग् श्रुत और मिथ्याश्रुत का विवेक किया जा सकता है और साशयिक - मिथ्यात्व से बचा जा सकता है ।
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भौतिक विज्ञान की क्षुद्रता
सांशयिक - मिथ्यात्व को बढाने के अन्य कारणो मे भौतिकविज्ञान भी निमित्त बना है । भौतिक विज्ञान के प्रभाव मे आये हुए कई 'जैन पंडित' कहाने वालो ने साधारण जनता को