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सम्यक्त्व विमश
अहकार इस मिथ्यात्व का मल है। प्रतिष्ठित और बहुजन-मान्य व्यक्तियो मे से भूल को सुधारकर सत्य अपनाने वाले विरले ही होते हैं। अधिकाश अपनी, और अपने पक्ष की असत्यता का अनुभव करते हुए भी केवल अहकार के कारण उस असत्य को पकड़ रखते है और अपनी विद्वत्ता, योग्यता, प्रतिष्ठा तथा सबध का उपयोग कर के सत्य-पक्ष को दबाने और नष्ट करने का प्रयत्न करते रहते हैं । वे सोचते हैं,
__ "यदि मैं अब अपनी भूल स्वीकार करलूंगा, तो लोगो मे मेरी प्रतिष्ठा घट जायगी, और सामने वाले की प्रतिष्ठा बढ जायगी,"-इस प्रकार का दुर्विचार इस मिथ्यात्व का मूल कारण है। उस समय वह यह नही सोचता कि 'जहा तक छद्मस्थता है, वहा तक भूल होने की सम्भावना है ही । इसलिए इस भूल के शूल को शीघ्र ही दूर करके अपनी आत्मा को शुद्ध बनालूं।"
सम्यग्दृष्टि चाहकर भूल नहीं करता, कितु अनुपयोग अथवा गलत धारणादि के योग से भूल होजाती है, यदि उसे मालम हो जाय कि 'मेरी कही हुई अथवा लिखी हई बात गलत है, तब शीघ्र ही उस भूल को सुधार कर सत्य स्वीकार करने को वह तत्पर रहता है । यह तत्परता और भूल-सुधार उसे मिथ्यात्व से बचाते हैं । उसकी भावना मे अपनी भूल प्रकट होने का भय नही, किंतु भूल दूर होकर सत्य प्रकट होने की प्रसन्नता होनी चाहिए। उस मे यह भावना हो कि "मेरे द्वारा कभी भी सत्य का अपलाप नही हो"। यह बात जितनी कहने मे सरल है, उतनी करने मे सरल नही है । कहते तो दोनो