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सम्यक्त्व विमर्श
मृतक कार्य प्रसंग पर जिनपूजा करने का और मृतक का धन जिनदान मे देने का कहते है, पैसे के लिए अगादि सूत्र श्रावको को सुनाते है । शाला मे अथवा गृहस्थ के घर मे खाजा आदि का पाक करवाते है, नांद मॅडवाते है, अपने हीनाचारी मृत गुरुओ के दाहस्थल पर चबूतरे बनवाते हैं, बलि करते है, उनके व्याख्यान मे स्त्रिये उनका गुणगान करती है. मात्र स्त्रियो के सामने भी वे व्याख्यान देते है और साध्विये मात्र पुरुषो के समक्ष व्याख्यान देती है। वे भिक्षा के लिए नही फिरते है अर्थात् अपने स्थान पर ही आहार मँगवा लेते है । वे साधुओ की मडली मे बैठकर भी भोजन नही करते, सारी रात वे सोते ही रहते हैं, गुणवानो से द्वेष करते है, वस्तुओ की खरीदी करते हैं और वेचते हैं, प्रवचन के वहाने वे विकथा करते हैं। छोटे बच्चो को वे चेला बनाने के लिए पैसे देकर खरीदते है । भोले लोगो को ठगते हैं, वे जिन प्रतिमा को वेचते है और खरादते हैं । वे उच्चाटनादि क्रिया, वैद्यक और मन्त्रादि करते हैं, डोरे धागे भी करते है, शासन-प्रभावना के बहाने लडाई झगडे करते हैं, सुविहित साधुओ के पास श्रावको को जाने से रोकते है, शाप देने का भय दिखाते है, धन देकर अयोग्य शिप्यो को खरीदत हैं, कर्ज देते हैं और व्याज सहित वसूल करते है, प्रशास्त्रीय अनुष्ठान मे प्रभावना होना बतलाते हैं, प्रवचन मे जिनका विधि या उल्लेख नही है-ऐसे तप की प्ररूपणा करके उसके उजमणे करवाते है, अपने लिए वस्त्र पात्र उपकरणो और द्रव्य, अपने गृहस्थो के यहा संग्रह करवाते है। व्याख्यान सुनाकर