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देह तो आयु कर्म के अन्त में यहां ही रह जाती है; परन्तु सूदन देद (अन्तःकरण) तो परलोक में भी जीव के संग ही जाती है. जस अन्तःकरण के शुन्न-अशुजहोने से जीव की शुन्न अशुज योनि में बैंच हो जाती है. जैसे दृष्टान्त है कि, चमक पत्थर तो यहां और मुनासिब अन्दाजा के अनुकूल फासले से सूई वहां परन्तु खंच हो कर मिल जाते हैं, क्यों कि वह पत्थर भी जम है और सूई नी जम है, परन्तु उस जम की जस अव.. स्था में बैंच का और मिलने का स्वन्नाव है।
ओर कोई तीसरा ईश्वर वा भूत उन्हे नहीं मिलाता है. ऐसे ही जीव का अन्तःकरण जी जमदे,और जिस योनि मजा कर पैदा होने वाले कर्म हैं, नस योनि की धातु जी जम है; परन्तु उनकी शुज अशुन अवस्था मुकाबले की होनेसे पूर्वोक्त खंच हो कर पैदा होने का स्वभाव होता है चाहे लाखों कोस