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साधूनां दर्शनं पुण्यं, तीर्थ जूताहि साधवः।। कालेन फलते तीथ, सद्यः साधु समागमः ।।
अर्थ-साधु का दर्शन ही सुकृत है साधु ई तीर्थ रूप हैं तीर्थ तो कनी फल देगा साधुओं के संग शीघ्र ही फलदायक हैं १ और जो धर्म सन्न में धर्म सुनने को अधिकारी आवे वह यात्री श्री जो धर्म प्रीति और धर्म का वधाना अर्थात् आश्न का सम्बर का बधाना ( विषयानन्द को घटाना आ त्मानन्द को बधाना) वह यात्रा ३ श्न पूर्वोक्त सः
का सिद्धान्त (सार ) मुक्ति है अर्थात् सर्व प्रकार • शरीरी मानसी दुःख से बूटकर सदैव सर्वज्ञता श्रा त्मानन्द में रमता रहे ॥
॥ इति दश नियमः ॥ शुजम् ॥
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॥ संपूर्णम् ॥