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५०-सम्यक्त्वपराक्रम (४)
लालन-पालन चाहे जैसे किया जाये, आखिर उसका नाश अवश्य होता है। 'देह का नाश होता है, देही का नहीं' यह वात ध्यान में रखकर अनेक भक्तो ने तथा महात्माओ ने असह्य सकट सहन करके भी आनन्द का अनुभव किया था । अगर आत्मा को अपनी अजर-अमरता का भान हो जाये तो उसका कल्याण हुए विना नही रह सकता ।