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________________ एकत्तरवां बोल - ३५७ सुनकर एक ने सोचा- मैं यही नही जानता कि गाली किसे कहते हैं ? गाली देने वाला मुझे गाली नही, किन्तु उपदेश दे रहा है । वह मुझे लुच्चा कहता है, अगर मुझ मे लुच्चापन है तो मुझे उसका त्याग कर देना चाहिए और सचमुच मुझमे लुच्चापन है और यह आदमी उसकी निन्दा करता है तो क्या बुरा करता है ? इस प्रकार विचार करके पहला मनुष्य शान्त रहा । उसके हृदय में लेशमात्र भी द्वेष उत्पन्न नही हुआ । दूसरे आदमी ने कहा- यह मुझे गालिया दे रहा है । यह कह कर उसने गाली देने वाले को दण्ड दिया । तीसरे आदमी को गालिया असह्य मालूम हुईं । पर उसने सोचा - गाली देने वाला बलवान् है और मैं निर्बल हू । मैं उससे कुछ कहूगा तो वह मुझे मार देगा | इन तीन तरह के मनुष्यो मे से तुम किसे अच्छा और किसे बुरा कहोगे ? इस प्रश्न के उत्तर मे यह कहा जायेगा कि पहले मनुष्य ने पूरी तरह अहिंसा का पालन किया और गाली के विषय मे राग-द्वेष जीत लिया है, जब कि तोमरे आदमी ने अहिंसा का सिर्फ ढोग हो किया है । उसमे वास्तविक अहिंसा नही है । उसने दिखावटी तौर पर ऋाघ को जोता है, दरअसल नहीं । उनके दिल में क्रोध है, बदला लेन की भावना है, पर अशक्ति के कारण ही वह चुप रहा है । इम प्रकार की अहिंसा या क्षमा तमोगुणी है पहले मनुष्य ने जिस अहिंसा का परिचय दिया, वह श्रहिंसा सतागुणी है । 1 हृदय मे राग-द्वेष उत्पन्न न होना, अपूर्व शांति रहना सतोगुणी क्षमा है । हृदय में जब सतोगुणी क्षमा रहती है +
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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