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________________ ३४६-सम्यक्त्वपराक्रम (५) आदि द्वारा पार किया जा सकता है, लेकिन माशा-नदी को पार करना अत्यन्त कठिन है । इस दुस्तर नदी को कोई शुद्ध मन वाला योगीश्वर ही पार कर सकता है । नाव मे बैठ कर कोई भी दुस्तर नदी पार की जा सकती है । बल्कि ऐसी अवस्था मे नदी एक श्रीडास्थली बन जाती है। इसी प्रकार जो लोग शुद्ध भावना के साथ परमात्मा का शरण ग्रहण करते हैं, उनके लिए यह ससार भी क्रीडाघाम बन जाता है । परमात्मा के शरण मे जाने पर यह दुःखमय ससार भी सुखमय बन जाता है। अतएव अगर दुखमय ससार को सुखमय बनाना चाहते हो तो परमात्मा का तथा परमात्म-प्ररूपित धर्म का शरण स्वीकार । करो । कहने का आशय यह है कि प्रात्मा को आशा नदी पार करनी चाहिए । अगर तुम आत्मा को आशा-नदी के परले पार पहुंचाना चाहते हो तो परमात्मा के शरण में जाओ और कुछ भी न बन पड़े तो परमात्मा का नाम-कीर्तन ही करो । शास्त्र में कहा है एको वि णमुक्करो जिणवरवसहस्स बद्धमाणस्स । ससार-सायरानो तारेइ नर व नारि वा ॥ परमात्मा को किया गया एक भी नमस्कार जव आत्मा को ससार-समुद्र से पार कर देता है तो फिर एक नदी को पार करा देना कौन बडी बात है ? अत. संसारसमुद्र को पार करने के लिए परमात्मा के शरण मे जाना चाहिए । परमात्मा के शरण में जाने से प्रात्मा का कल्याण अवश्य होता है।
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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