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________________ सत्तरवां बोल लोभ-विजय परमात्मा का सच्चा नाम-संकीर्तन करने के लिए कषाय का त्यागना आवश्यक है। जब तक हृदय में कषायभावना है तब तक परमात्मा की सच्ची प्रार्थना नहीं हो सकती । कषाय का त्याग करना अर्थात् क्रोध, मान, माया और लोभ को जीतना । कषाय को जीतने से प्रात्मा को वहुत लाभ होता है । क्रोधविजय, मानविजय और माया. विजय से होने वाले लाभो पर पहले विस्तृत विवेचन किया जा चुका है । अब लोभ को जीतने से जीव को क्या लाभ होता है, इस विषय में गौताम स्वामी, भगवान् महावीर से प्रश्न करते हैं : मूलपाठ प्रश्न - लोहविजएण! भते ! जीवे कि जणयइ ? उत्तर- लोहविजएणं संतोसं जणयइ, लोहवेयणिज्जं कम्मं न बंधइ, पुवबद्ध च निज्जरेइ ।। ७० ॥
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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