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________________ उनहत्तरवां बोल-३३६ भेद नही है । जो सत्य-सरलता रखता है वही महान् है । शास्त्र मे भी कहा है-'त सच्च खु भयव' अर्थात् सत्य ही भगवान् है । हम लोग सत्यमूर्ति भगवान् महावीर के शिष्य हैं । हमें उनके कथन पर विश्वास रखकर कपटभाव का त्याग करना चाहिए । सत्याचरण की प्रतिज्ञा ले लेने से वकील की पत्नी अत्यन्त प्रसन्न हुई । उसने कहा- हम लोगों को भले ही कष्ट सहन करने पडें, लेकिन पाप की कमाई करना उचित नही है । दूसरे दिन वकील ने वादी और प्रतिवादी को बुलाकर दोनो के बीच सन्तोषजनक समझौता करा दिया । कहने का आशय यह है कि छल-कपट करने वाले को लोग होशियार समझते हैं परन्तु जब कपटी का ध्यान अपनी ओर जाता है तो उसे पश्चात्ताप हुए बिना नही रहता । अतएव छल-कपट का त्याग करके और माया ममता को छोड़कर आत्महितैषी लोगों को सरलता का प्राश्रय लेना चाहिये । लोगों मे कपट होने के कारण ही आज कचहरियो निभ रही हैं । पहले जब लोगो मे सरलता थी तो पचायत में ही झगड़े का समाधान हो जाता था । सुनते हैं, अब फिर पंचायत की पद्धति प्रारम्भ हो रही है । परन्तु यह पद्धति तभी लाभदायक हो सकती है जब कपट का त्याग करके सत्यता और सरलता को जीवन में स्थान दिया जाये। सत्यता और सरलता रखना ही सुमति है तथा कूड़-कपट और माया-ममता रखना ही कुमति है । अगर हम सुमति चाहते हैं तो कपट का त्याग करना अनिवार्य है। जो लोग सत्यता और सरलता का महत्व समझते हैं, वे मस्तक पर अनेक संकट आ पड़ने पर भी सत्यता
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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