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________________ ३२४-प्तम्यक्त्वपराक्रम (५) और माया तथा लोभ दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जाते हैं । सक्षेप में, यह चारो कष य संसार के मूल का सिंचन करते रहते हैं। मुमुक्ष जीवो को मसर की असारता जानकर चारों कषायो का त्याग करना चाहिए । चारो कषायो को जीतने का उपाय शास्त्रकारो ने यह बतलाया है : उसमेण हणे कोहं, माण मद्दवया जिणे । मायमज्जवभावेण, लोहं सतोसो जिणे ॥ ( दश० ८, ३६) अर्थात्- क्रोध को क्षमा द्वारा जीतना चाहिए, मान को मृदुता-नम्रता से जीतना चाहिए, माया को सरलता से जीतना चाहिए और लोभ को सतोष से जीतना चाहिए । क्रोध को जीतने से जीवात्मा को क्षमागुण की प्राप्ति होती है, क्रोध में उत्पन्न होने वाले नवीन कर्मों का वध नही होता और पूर्व कर्मों को निर्जरा होती है। श्रोध को जीतने से आत्मा को यह अपूर्व लाभ होता है । अब गौतम स्वामी यह प्रश्न करते हैं कि मान किम प्रकार जीता जा सकता है और उसे जीतने से जीवात्मा को क्या लाभ होता है ? मूलपाठ प्रश्न-माणविजएण भते । जीवे कि जणय ? उनर-माणविजएणं मद्दव जणयइ, माणवेयणिज्ज कम्म न बघइ, पुत्ववद्ध च निज्जरेइ ।। ६८ ॥
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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