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बासठ, त्रेसठ, चौंसठ, पैंसठ छांसठवां बोलू
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इन्द्रिय - निग्रह
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ज्ञान, दर्शन श्रौर चारित्र के प्रश्नोत्तर मे भगवान् ने उत्तर देते हुए कहा कि चारित्र की को शैलेशी प्रावस्था प्राप्त होती है हो जाता है । सवर ही चारित्र है लाते हुए शास्त्र मे कहा है - इन्द्रियो सवर है । मगर इन्द्रियनिग्रह क्या है को क्या लाभ होता है, इस विषय जाता है ।
उत्कृष्टता से जीवात्मा
इसके बाद वह मुक्त संवर का स्वरूप बतका निग्रह करना ही और उससे जीवात्मा मे अब प्रश्न किया
प्रत्येक कार्य का फल तो मिलता ही है और फल जानने के बाद ही कार्य मे शीघ्र प्रवृत्ति होती है । फल दो प्रकार का है - लौकिक और लोकोत्तर । लौकिक फल की इच्छा करना उचित नही है । लोकोत्तर फल तो धर्म के साथ ही होता है और उसे जान लेने के बाद धर्मकार्य मे प्रवृत्ति हो सकती है |