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२२-सम्यक्त्वपराक्रम (४)
होता । अवैर-प्रेम से ही वैर शान्त होता है। प्रेम से देर शान्त करना ही सनातन धर्म है ।
असली खूबी तो शान्ति क्षमा से क्रोध को शान्त करने __ में ही है। क्रोध भयकर शत्रु है। इस शत्रु को क्षमा
से जीतना ही सच्ची वीरता है । नमीराज ने भी इन्द्र से कहा था
जो सहस्सं सहस्साण संगामे दुज्जए जिणे । एगे जिणेज्ज अप्पाण एस सो परमो जयो ।
-उत्तराध्ययन, & तात्पर्य यह है कि जो पुरुष क्रोध को अक्रोध से जीतता है, वही सच्चा वीर है । इसी प्रकार जो कषाय पर विजय प्राप्त करता है, वही सच्चा वीर है। कषायो पर विजय प्राप्त करने मे ही बोरता है।
माता का आदेश पाकर पुत्र ने प्रसन्नतापूर्वक अपने पितहन्ता शत्रु को गले लगाया । दोनो ने सगे भाइयो की तरह साथ साथ भोजन किया ।
कहने का प्राशय यह है कि जो स्थान कषाय उत्पन्न करने का है, वही स्थान कषाय जीतने का भी है वे वास्तव मे वीर पुरुष हैं जो अपने शत्रुनो को भी मित्र बना लेते हैं । सच्ची वीरता तो इसी मे है कि क्रोध को अक्रोधशान्ति-क्षमा से जीता जाये और शत्रुओ को भी मित्र बना लिया जाये । शत्रुता जब मित्रता के रूप में परिणत हो जाती होगी तब कैसा अनिर्वचनीय आनन्द आता होगा !
यह तो शास्त्र की बात हुई । इतिहास मे भी ऐसे उल्लेख देखने-जानने को मिलते हैं । उदयपुर के पृथ्वीराजजी